इकबाल की प्रतिभा से प्रभावित होकर अँग्रेज सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि देनी चाही। पर उन्होंने यह कर इनकार कर दिया कि जब तक मेरे गुरु को सम्मान नहीं मिलता तब तक मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता।
सरकार इस कथन से प्रभावित हुई और इकबाल के गुरु मीर हसन को भी ‘शुम्स उलज्लेमा’ की पदवी से विभूषित किया। इसके बाद ही उनने सर का खिताब स्वीकार किया।
करना ही जीवन लक्ष्य है। निर्मल जीवन ही ईश्वर की निकटता को निरन्तर अनुभव करता है। जिसे मर्यादाओं को पालने और वर्जनाओं को बहिष्कृत करने का अभ्यास है। समझना चाहिए कि उसका शौर्य-साहस प्रौढ़ परिपक्वता की स्थिति में जा पहुँचा।
ऐसे व्यक्ति ही महामानव कहलाते हैं, वे कामनाओं को भावनाओं में बदलते हैं। वे क्षुद्रता के दलदल से उबरते और महानता के मानसरोवर में स्नान करते हैं। देवताओं का निवास स्वर्गलोक जैसे किसी दूर क्षेत्र में माना जाता है। पर उस मान्यता की तुलना में प्रत्यक्ष दर्शन का यही अधिक सुस्पष्ट आधार है कि मनुष्यता को सच्चे अर्थों में अवधारण किया जाय तो देवत्व की भूमिका निबाहते हुए इस मनुष्य जीवन को ही अनुकरणीय और अभिनंदनीय स्तर तक विकसित किया जा सकता है। नर नारायण के समुन्नत स्तर तक अपने आपको पहुँचाने के लिए प्रबल प्रयत्न किया जाना इसी प्रकार संभव है।