ठोस एवं सुनिश्चित प्रगति का राजमार्ग

September 1991

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साधनों के सहारे सफलता प्राप्त होने की बात पर सभी विश्वास करते हैं पर यह भूल जाते हैं कि मनुष्य की अपनी निजी सत्ता में भी ऐसी विभूतियाँ पड़ी हैं जो विपुल साधनों का अभाव किसी प्रकार खलने नहीं देती। उनके सहारे व्यक्ति प्रगति के विपुल साधन समय-समय पर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करता रह सकता है।

आवश्यक नहीं कि व्यक्ति के पास निजी संग्रह सम्पदा ही बड़ी मात्रा में हो। दूसरों के सहयोग से भी पूँजी के अभाव की पूर्ति हो सकती है। कितने ही व्यक्ति ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त धन है, वे दूसरों को उधार देकर उसके माध्यम से ब्याज या मुनाफा कमाना चाहते हैं किन्तु सहयोग देने से पूर्व यह भली भाँति पड़ताल करते हैं कि जिसके हाथ में पैसा दिया जाय वह वापस करेगा या नहीं? ब्याज या लाभ अर्जित कर सकेगा या नहीं? ऐसे प्रसंगों में उस व्यक्ति का व्यक्तित्व अनेक रीति से यहाँ जाँचा परखा जाता है कि जिसे सहयोग दिया जाता है वह इसका पात्र भी है या नहीं। पात्रता और प्रामाणिकता की कसौटी पर खरा सिद्ध होने के उपरान्त व्यक्ति को अनेक सहयोगी ऐसे मिल जाते हैं जो आर्थिक उपार्जन करा सकते हैं। उनकी चतुरता काम नहीं आती वरन् भलमनसाहत काम देती है। इसके लिए वाणी में आत्मीयता और सज्जनता का समावेश होना चाहिए। बहुत बोलना, लच्छेदार बातें करना आवश्यक नहीं। इसमें तो धूर्तता-बनावट और ठगी की गंध होती है। संक्षेप में सीधी किन्तु सही बात कहने पर उससे कहीं अधिक प्रयोजन सिद्ध होता है, जितना कि चतुरतापूर्ण लच्छेदार बातों से। ऐसा कथन रोचक, आकर्षक तो लगता है किन्तु साथ ही यह भय भी बना रहता है कि वाक् जाल में फँसा कर कहीं ठगा तो नहीं जा रहा है।

वाणी में नम्रता होनी चाहिए। साथ ही मिठास भी। दूसरों को अपना बनाने के लिए आत्मीयता का वचन में ही नहीं व्यवहार में भी समावेश होना चाहिए। आत्मीयता स्वाभाविक होती है। उसमें उदारता सम्मिश्रित रहती है। सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है। मीठे वचन बोलने की कला में कई चापलूस और ठग भी बहुत प्रवीण होते हैं पर यह कौशल हर किसी पर प्रभावी नहीं होता। जादू के खेल देख कर छोटे बच्चे ही चमत्कृत होते हैं किन्तु जो बड़े एवं समझदार हैं वे समझते हैं कि यह सब हाथ की सफाई मात्र है। इसी प्रकार व्यवहार का समग्र परिचय प्राप्त किये बिना यह नहीं जाना जा सकता कि किसकी सज्जनता वास्तविक है किसकी अवास्तविक? इसकी जाँच पड़ताल करने के लिए किसी की पिछली जीवनचर्या खोजनी पड़ती है और देखना यह भी पड़ता है कि इन दिनों उसका व्यवहार अपने परिवार, पड़ोस एवं संपर्क क्षेत्र में


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