शक्ति को तीक्ष्ण भी (Kahani)

September 1991

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चारण ने एक सामंत की प्रशंसा में कई गीत बनाये और उन्हें भरे दरबार में जा कर स्वरों के साथ गाया।

सामंत ने इनाम पाने के लिए कल आने को कहा। कल आया तो, फिर कभी आने के लिए कह दिया। इस प्रकार कई दिन चक्कर काटने के बाद चारण ने कहा जो कुछ देना है दे दीजिए न।

सामंत ने कहा तुमने बातें बनाकर मुझे प्रसन्न किया। मैं तुम्हें वायदा करके प्रसन्न कर दिया करता हूँ। यह तो ऐसे ही चलेगा।

यदि नगद पाना है तो खेत का अनाज बेचने के लिए लाना और इस हाथ दे उस हाथ ले की उक्ति चरितार्थ होते हुए प्रत्यक्ष देखना।

चारण ने वास्तविकता समझी और सस्ते में बहुत कुछ पाने का इरादा छोड़कर अपनी खेती बाड़ी में लग गया।

वह व्यक्ति की रुचि व मनोयोग का सहारा लेता है एवं देखता है कि उसका रुझान किन बातों व घटनाओं की ओर है। इतना निश्चय कर लेने के उपरान्त वह संबंधित घटनाओं को सुरक्षित रख कर बाकी को विस्मृत कर देता है। इस प्रकार रुझान के अनुरूप स्मृति-विस्मृति का आधार खड़ा होता है। इतना समझ लेने के बाद किसी बात को मस्तिष्क में अधिक समय तक धारण किये रहने की क्षमता उसमें कम है। जहाँ ऐसा प्रतीत हो वहाँ विषय के प्रति गंभीरता की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इतने भर से कमी को दूर किया जा सकता है एवं स्मरण शक्ति को तीक्ष्ण भी।


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