शरीर की उपयोगिता निस्संदेह अधिक है, पर उसे इतना न सजाओ कि आत्मा की महिमा फीकी पड़ चले।
शर्त रखी कि यदि यह रोटी मक्खन के हिस्से वाली ओर से नीचे गिर गई, तो आपको हार माननी पड़ेगी और दूसरी ओर से गिरी तो पराजय स्वीकार लूँगी। रोटी गिरायी गई। दुर्भाग्यवश ब्रेड मक्खन वाले भाग की ओर से नीचे गिरी। यह देख पत्नी को अत्यन्त प्रसन्नता हुई। उसने पति की हार पर उनकी खिल्ली उड़ा दी पर पति महोदय बड़े धैर्यवान थे। उन्होंने कहा “इसमें हार क्या और जीत क्या! मक्खन मैंने जानबूझ कर गलत ओर लगा दिया था, ताकि तुम जीत जाओ और तुम्हें अनावश्यक निराश न होना पड़े।” पत्नी ने पति के तर्क का लोहा मान लिया, उसने कहा निश्चय ही आप जो विश्व को कहेंगे अवश्य ही उसे स्वीकारा जाएगा।
यहाँ अभिप्राय यह तनिक भी नहीं कि तर्क निरर्थक और निष्प्रयोजन हैं। ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न धाराओं में हमें अनेक बातें तर्क के आधार पर स्वीकार करनी पड़ती हैं, किन्तु दलील को ही सब कुछ मान लिया जाय और उसके प्रति दुराग्रही मान्यता अपना ली जाय यह ठीक नहीं। तर्क के साथ-साथ विवेक बुद्धि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए तभी सत्य और तथ्य के करीब पहुँचा जा सकता है।