ग्राहक को संतोष न हुआ (Kahani)

September 1991

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बेंजामिन फ्रेंकलिन उन दिनों किताबों की दुकान चलाते थे। सेल्समेन से एक ग्राहक ने किसी किताब का मूल्य पूछा। उसने बताया एक डालर।

ग्राहक कम करने का आग्रह करने लगा। सेल्समेन ने बार-बार समझाया। “हमारे यहाँ एक दाम की नीति है। आप लें या न लें। दाम एक ही रहेगा।”

ग्राहक को संतोष न हुआ। वह मालिक के कमरे में घुस गया और दाम कम कराने का आग्रह करने लगा। फ्रेंकलिन ने सिर उठाया और संक्षेप में कहा “अब उसकी कीमत सवा डालर है। चौथाई डालर मेरे समय की कीमत और जुड़ गई।” उस समय तो वह चला गया पर थोड़ी देर में फिर लौटा तो कहा “उतने ही दाम में दिला दीजिए।” फ्रेंकलिन ने कहा “अब वह डेढ़ डालर में मिलेगी। आप बार-बार हमारा समय खराब करेंगे तो उसी हिसाब से उसके दाम बढ़ते जायेंगे।”

ऐसे ही विस्फोटों का वर्णन बेल्जियम के विख्यात प्रकृतिविद् ई. वान डेन ब्रोएक ने अपनी चर्चित कृति “सिमेल एट टेरे” में की है, जो आज भी ब्रूसेल्स के “नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम” में सुरक्षित रखी पड़ी है। इसमें उन्होंने ऐसे अनेकानेक विस्फोटों का उल्लेख किया है, जो समय-समय पर बेल्जियम के समुद्र तट पर सुने जाते रहे हैं और जिनके स्त्रोत का गहन जाँच-पड़ताल के बावजूद भी पता न चल सका। अभी भी ऐसी तीव्र आवाजें उस क्षेत्र में यदा-कदा सुनी जाती रही हैं, पर रहस्य पर से पर्दा अब तक उठ नहीं सका है।

इसी प्रकार की गन-फायर जैसी अनसुलझी ध्वनियाँ अविभाज्य भारत के सुन्दरवन (या सुन्दरबन) क्षेत्र में लम्बे काल से सुनी जाती रही है। आजकल यह क्षेत्र बँगला देश में पड़ता है। गंगा नदी से कुछ पश्चिम की ओर सुन्दर वन में बारीसाल नामक एक गाँव है, जो मुख्य शहर ढाका से लगभग सत्तर मील दक्षिण में स्थित है। बारीसाल और गंगा के पठार में विभिन्न स्थलों में ऐसी ध्वनियाँ अक्सर कर्णगत होती हैं। सन् 1896 की “नेचर” पत्रिका में इस आशय की प्रकृतिविद् जी. बी. स्कॉट की विस्तृत रिपोर्ट छपी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि जब वे सुन्दरवन होते हुए सन् 1871 के दिसम्बर माह में कलकत्ता से आसाम जा रहे थे, तो उन्होंने पहली बार यह रहस्यमय ध्वनि बारीसाल में सुनी थी, और इस संबंध में उक्त गाँव के लोगों से पूछताछ की थी, पर कोई भी इसके निमित्त व उपादान कारण को बताने में सफल न हो सका था। हाँ सभी ने इतना अवश्य स्वीकारा कि इस प्रकार के अविज्ञात धमाके प्रायः यहाँ हुआ करते हैं एवं इसका क्रम वर्षों पूर्व से चलता आ रहा है। उनका कहना था कि कई शोधार्थी अनेकों बार यहाँ हुआ करते हैं एवं इसका क्रम वर्षों पूर्व से चलता आ रहा है। उनका कहना था कि कई शोधार्थी अनेकों बार यहाँ आये और इसका कारण जानने का भागीरथी प्रयास किया, किन्तु परिणाम सदा निराशाजनक ही हाथ लगा। कठिन परिश्रम के बावजूद भी किसी अनुसंधानकर्मी को यह विदित न हो सका कि दक्षिण में समुद्र की ओर से यह विस्फोट किसी प्रकार व बार-बार क्यों कर उत्पन्न होते हैं। श्री स्कॉट अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि एक बार इस संदर्भ में उनने उक्त गाँव के एक वयोवृद्ध व्यक्ति से पूछताछ की, तो उसने सिर्फ इतना ही कहा कि यह रहस्यमय आवाज यहाँ “बारीसाल गन्स” के नाम से प्रसिद्ध है।

जी.बी. स्कॉट ने अपनी रिपोर्ट में ब्रह्मपुत्र नदी से तीन सौ मील दूर चिलमारी गाँव में भी नदी-तट के आस-पास ऐसी ही विलक्षण गर्जनाओं का उल्लेख किया है। लम्बे काल से कर्णगत होने वाली इस विचित्र ध्वनि के हेतु के बारे में भी लोगों को कुछ ज्ञात नहीं है। ऐसी बात नहीं कि इस संबंध में जानने की कोशिश ही न की गई हो। अनेक प्रयास यहाँ भी किये गये, पर हर बार की तरह यहाँ भी दुराशा ही पल्ले बँधी।

प्रख्यात थियोसोफिस्ट कर्नल एच.एस. आलकाँट ने अपने संस्करण में बारीमाल के रहस्यमय विस्फोटों एवं जी.बी.स्कॉट की रिपोर्ट की सत्यता की पुष्टि की है। उनके अनुसार बारीसाल की गर्जनाएँ इतनी तीक्ष्ण और कर्णबेधी होती थीं, मानो निकट के ही किसी सैनिक शिविर से तोप छोड़ी गई हो, जबकि तथ्य यह था कि वहाँ मीलों दूर तक ऐसा कोई सैन्य शिविर नहीं था। वे लिखते हैं कि अभी भी वहाँ की तोप जैसी आवाजें रहस्य के गर्भ में छुपी हुई हैं।


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