सामान्यतः लोग इतना भर जानते है कि 'कणाद' एक ऋषि थे, जो खेतों में से अन्न के दाने बीनकर अपना पेट भर लेते थे; किंतु बात इससे भी अधिक महत्त्व की है कि कणाद नाम क्यों विख्यात हुआ। कणाद को कणभुज या कणभक्ष भी कहते हैं। वास्तविकता यह है कि कणाद बड़े विचारक थे। उन्होंने संसार के पदार्थों के बारे में नवीनतम दृष्टि से सोचा था और अंत में वे इस नतीजे पर पहुँचे थे कि संसार के पदार्थ छोटे-छोटे कणों से बने है, जिन्हें अणु-परमाणु नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कणाद से पूर्व इस तरह पदार्थ की रचना, कण और अणु के बारे में किसी ने गहराई से विचार नहीं किया था।
ऐसा भी कहा जाता है कि कणाद, ईश्वर तथा वेदों के संबंध में प्रचलित मत से सहमत नहीं थे। अतः तत्कालीन विचारक और विद्वान उनसे नाराज ही रहते थे, इसलिए वे उनकी खिल्ली उड़ाते रहते कि वह सारी सृष्टि में कण-कण ही देखता रहता है, खाता भी कण ही होगा। इस तरह भी वे कणाद नाम से जाने गए।
कणाद ने अपने विचारों को नपे-तुले शब्दों में सूत्ररूप से लिख डाला। कणाद की यह पुस्तक 'कणाद सूत्र या 'वैशेषिक सूत्र' के नाम से विख्यात है। कणाद के विचारों को वैशेषिक दर्शन भी कहते हैं। कणाद ने छः प्रकार के पदार्थों की कल्पना की और इनमें द्रव्य को प्रमुख माना, फिर उन्होंने द्रव्य को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश आदि आठ भागों में बाँटा और इनके गुण निर्धारित किए। जैसे जल का गुण उन्होंने रस बताया। आकाश का शब्द। आज भी हम जानते हैं कि वायुरहित आकाश में शब्द सुनाई नहीं देता। सूर्य की किरणें जब कमरे में दिखाई पड़ती हैं, उनमें धूल कण दिखाई देते है उन्हें कणाद ने त्रसरेणु नाम दिया है। इन कणों को विभाजित किया जा सकता है और अणु-परमाणुओं में विभक्त किया जा सकता है। कणाद का कहना था कि परमाणु पदार्थ का सबसे छोटा कण है। ये अदृश्य हैं, अविभाज्य हैं, अनादि-अक्षय हैं। कणाद से दो सौ वर्ष पूर्व यूनान में भी एक विचारक हुआ है— 'देमो क्रेतिमस'। उसने भी ऐसे ही विचार प्रकट किए थे कि समस्त वस्तुएँ अ-तोमन (एटम) से बनी हैं। तब उसका भी विरोध हुआ था; किंतु कणाद और देमो क्रेतिमस ही सही निकले।