एक तांत्रिक ऐसी विद्या सीखकर आया कि उस अनुष्ठान की पूर्णाहुति रात्रि को बारह बजे हो। मंत्र पूरा होते ही उबलते पानी में मक्का के दाने डाले जाएँ तो वे सभी मोती बन जाएँ।
तांत्रिक अपने काम में लग गया। पत्नी को पास बिठा लिया और सावधान कर दिया कि वह जैसे ही पूर्णाहुति सूचक हुंकार भरे, वैसे ही खौलती हाँडी में मक्का डाल दे। विधान चल पड़ा।
पत्नी स्वभाव की आलसिन भी थी और अविश्वासी भी। उसने उपेक्षापूर्वक सुना; पर आज्ञापालन में भलाई देखी, सो चूल्हे में आग जलाकर पानी चढ़ा दिया। मक्का का कटोरा भी पास था। रात बीतते उन्हें नींद आने लगी, सो पैर सिकोड़कर वहीं सो गई।
पूर्णाहुति की हुंकार तांत्रिक ने कई बार की, पर पत्नी तो सोई हुई थी। वह उठा, जगाया और पानी में मक्का डालीं; पर कुछ हुआ नहीं। समय निकल चुका था। अविश्वास और आलस्य ने सारा प्रयास व्यर्थ कर दिया।
दूसरे दिन पड़ोस की बुढ़िया एक कटोरा भरकर मोती लेकर तांत्रिक के पास आई। उन्हें सौंप दिए और कहा— "आपकी बात मैं दीवार के छेद में से सुन रही थी। चूल्हे पर पानी उबालती रही और हुंकार की प्रतीक्षा करती रही। आपका संकेत सुनकर मैंने तत्काल पानी में मक्का डाल दी। उसी से बने यह मोती है।"
जागरूकता और तत्परता, सफलता की अनन्य सहायिका हैं।