चार चोर एक गाय चुराकर लाए। बंटवारा इस प्रकार हुआ कि चारों बारी-बारी एक-एक दिन उसे अपने घर रखे।
चतुरता में चारों एकदूसरे से बढ़े-चढ़े थे। बारी के दिन गाय का दूध तो निकालते; पर घास यह सोचकर न खिलाते कि पिछले दिन वाले ने इसका पेट भरा ही होगा। अगले दिन वाला भी खिलाएगा ही। एक दिन मैं न खिलाऊँ तो क्या हर्ज है।
यही क्रम कई दिन चला। भूखी गाय का दूध सूखता गया और अंत में उसके प्राण भी निकल गए। अधिकार के लिए आतुर और कर्त्तव्य से बचने वालों को घाटा भी पड़ता है और अपयश भी मिलता है।