किसान के घोड़े की ख्याति चारों ओर फैल गई। ऐसा घोड़ा तो राजा के अस्तबल में भी नहीं था। लोग मुँहमाँगा मोल तक देने को तैयार थे; किंतु किसान किसी कीमत पर घोड़ा बेचने को तैयार न होता। उसे घोड़े से जान से भी अधिक प्रेम था। एक रात घोड़ा अस्तबल से अचानक गायब हो गया। बात आग की तरह सारे गाँव में फैल गई। लोग सांत्वना देने किसान के पास आने लगे। किसान ने कहा— "तो इसमें कौन सी नई बात हो गई, सिर्फ घोड़ा ही तो नहीं है अस्तबल में। इसमें दुःख की क्या बात है।" बुरा हुआ कि भला हुआ, यह तो ईश्वर ही जानता है। हम तो घटना को देख सकते है। उचित-अनुचित को तो ईश्वर ही जानता है। लोग औपचारिकता पूरी करके चले गए। कुछ दिन के उपरांत किसान का घोड़ा वापस लौट आया और इतना ही नहीं, अपने साथ दस घोड़े और जंगल से ले आया। अब की बार लोग इकट्ठे हुए और किसान के भाग्य की सराहना करने लगे। मुफ्त में कुछ मिल जाए तो भाग्य को सराहने का प्रचलन समाज में न जाने कब से है; किंतु किसान ने अब की बार भी वही बात दुहराई कि इसमें कौन सी नई बात है। हम कर भी क्या सकते हैं। जो कुछ हो रहा है, वह सब ईश्वर की मर्जी से हो रहा है। गाँव के लोगों ने पहली बात पर अपनी भूल स्वीकार की। किसान के भाग्य की सराहना करते हुए लोग लौट गए।
किंतु कुछ दिन के उपरांत एक और दुर्घटना घट गई कि किसान का इकलौता बेटा नए घोड़े पर सवारी करते हुए गिर गया और उसके पैर की हड्डी टूट गई। अब की बार लोग फिर इकट्ठे हुए। किसान से बोले— "यह तो ईश्वर ने बहुत बुरा किया।"
किसान बोला— "इसमें बुरा-भला क्या है? यह हम कैसे कह सकते हैं, हम तो वर्तमान के अतिरिक्त कुछ नहीं जानते।" कुछ दिन के उपरांत राज्य में लड़ाई छिड़ गई। सारे गाँव के नवयुवक सेना में बुला लिए गए। किसान के बेटे के पैर में चोट के कारण वही बच गया। अब लोग पुनः प्रशंसा करने लगे, तो किसान का वही एक उत्तर था कि भले-बुरे के अनुमान की कल्पना भर है। अच्छा किसमें है, बुरा किसमें है। यह विधाता से अधिक कोई नहीं जानता। जीवन के रहस्यों की अनंत शृंखला है, जो अज्ञात है— अनजान है, इसीलिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मरण की चिंता किए बिना, सत्कर्मों में निरत रहने कि लिए कहा गया है।