भविष्य में सर्वत्र अच्छाइयाँ (कहानी)

February 1990

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मनीषी कहते हैं कि; "मानवी स्वभाव की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि किसी भी शांतिपूर्ण मान्यता को वह अपने जीवन का अविच्छिन्न अंग मानकर चलता और तदनुरूप ही अपने क्रियाकलापों का निर्धारण करता है।" डॉ. रॉबर्ट एन्थोनी ऐसे भ्रममूलक विश्वासों को 'मिस्टेकेन सर्टनिटीज' के नाम से संबोधित करते हैं, जिनके रहते संसार को बदलना तो दूर आत्मसुधार भी कठिन है।

इन भ्रांतियों से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि यथार्थतावादी दृष्टिकोण विकसित किया जाए। श्री एंथोनी ने यथार्थवादी चिंतन को जीवनचर्या के साथ जोड़ने के लिए नौ सूत्र ऐसे सुझाए हैं, जिनके समाविष्ट होने पर भ्रांतियाँ मिटती और प्रसुप्त प्रतिभा निखरती हैं। ये नौ सूत्र इस प्रकार है—

1- जीवन में अनौचित्यपूर्ण मान्यताओं को हटाकर औचित्य की विवेकशीलता को ही अपनाया जाए।

2- कल्पनाओं, मूल्यों, विश्वासों, आदर्शों, मान्यताओं और उद्देश्यों के निर्धारण में दूरदर्शिता का समावेश रहे।

3- अपनी आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और अभिप्रेरणाओं की वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए पुनर्गठन की प्रक्रिया को लागू किया जाए।

4- अपनी अंतःचेतना की सामर्थ्य पर विश्वास किया जाए।

5- अपने दोष-दुर्गुणों की कड़ी समीक्षा करते हुए उन्हें निकाल फेंका जाए और उनकी जगह सद्गुणों की संपदा को बढ़ाते रहें।

6- दूसरे लोगों के साथ स्नेह, सद्भाव और सहयोग-सहकार की भावनाओं को विकसित करें।

7- पक्षपातरहित चिंतन की स्वतः प्रक्रिया को न दबाया जाए। उचित-अनुचित का निर्णय ले सकने वाली प्रतिभा का विकास तभी होता है।

8- अपने समय का निर्धारण इस प्रकार किया जाए, जिससे आत्मसुधार और लोक-कल्याण के दोनों प्रयोजन पूरे होते हैं। निरर्थक बातों में समय न गँवाकर उच्च उद्देश्यों के लिए ही उसका नियोजन किया जाए।

9- अपने मन-मस्तिष्क में ऐसे सद्विचार उत्पन्न किए जाएँ कि संसार की गतिविधियाँ अपने साथ ही बदलती चली जा रही हैं और निकट भविष्य में सर्वत्र अच्छाइयाँ-ही-अच्छाइयाँ दृष्टिगोचर होने लगेंगी।


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