मानवी पुरुषार्थ का पूरक दैवी अवलंबन है (कहानी)

February 1990

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वर्ष 1970 की एक घटना को अमेरिकावासी कभी भी भुला नहीं सकते। अपोलो-13 नाम का राॅकेट अग्निकांड से ग्रसित हो चुका था, जिसमें बैठे सभी अंतरिक्ष यात्रियों की जान जोखिम में पड़ गई। पृथ्वी से 2 लाख पाँच हजार मील की ऊँचाई पर जो कुछ घटित हो रहा था। इसकी सूचना ‘ग्राउण्ड कन्ट्रोल तकनीकी’ के माध्यम से प्राप्त की जा सकी। देश के लगभग सभी नागरिकों ने जब इस दुःखद समाचार को रेडियो और टेलीविजन पर सुना तो आकुल-व्याकुल हो उठे। एसी विपन्न एवं विषम परिस्थितियों में मानवी प्रयास तो सफल होते नहीं दिखते, ईश्वरीय सत्ता ही इस आसन्न संकट को टाल सकती है। ऐसा सोच-समझकर करोड़ों लोगों ने ईश्वर से प्रार्थना करना आरंभ कर दिया। फलतः जेम्स ए लौबेल, फैड डब्लू हैस और जॉन एल. स्वीजर्ट जैसे अंतरिक्ष अभियानी राॅकेट से निकलकर प्रशांत महासागर की ओर बढ़े और एक मालवाहक जलयान पर आ टिके, जहाँ से उन्हें हैलिकाप्टर की सहायता से बाहर लाया जा सका। उपस्थित जनसमुदाय ने देखा कि तीनों ही साहसी युवक ईश्वर-प्रार्थना की मुद्रा में थे। उनके हाथ जुड़े और सिर नीचे को झुका था। ‘टाइम’ पत्रिका के मुख पृष्ठ पर उनका चित्र इसी स्थिति में देखने को मिला। उनने अपनी सुरक्षित यात्रा का एकमात्र कारण दैवी सहायता को ही बताया। अमेरिका के राष्ट्रपति ने ईश्वरीय अनुकंपा के उपलक्ष में एक विशेष प्रार्थना-सभा बुलाई और दैवी सत्ता के प्रति आस्थावान होने के लिए इस घटना का हवाला देकर सभी राष्ट्रवासियों को प्रेरित भी किया।

ह्यूस्टन अंतरिक्ष केंद्र के विशेषज्ञों का कहना है कि तीनों ही यात्रियों ने अपने साहस को नहीं खोया और बिना किसी कृत्रिम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता लिए ईश्वर स्मरण करते हुए रॉकेट की खिड़कियों से पैराशूट लेकर कूद पड़े और अपने को पृथ्वी तक पहुँचाने में सफल हो सके। सच ही है; मानवी पुरुषार्थ का पूरक दैवी अवलंबन है।


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