अवंतिका के माघ कवि उन दिनों जैसे-तैसे गुजर चला रहे थे, कि उनका परिचित एक व्यक्ति अचानक आ पहुँचा और कन्या-विवाह के लिए घर में कुछ भी न होने की बात कहकर कुछ याचना करने लगा।
माघ ने सब ओर दृष्टि दौड़ाई; पर घर में देने योग्य कुछ न था। उनकी दृष्टि सोती हुई पत्नी के हाथ पर गई। उसके दोनों हाथों में एक-एक सोने की चूड़ी थी। माघ दबे पाँव गए और धीरे से एक चूड़ी उतारकर याचक को देने लगे।
पत्नी उनींदी थी। वह प्रसंग को आधा-अधूरा सुन रही थी। वह उठ बैठी और दूसरे हाथ की चूड़ी भी उतारकर देती हुई बोली— "एक चूड़ी के दाम से बेचारे का काम कैसे चल सकेगा।"
दाता और याचक दोनों की ही, इस महानता ने आँखें छलछला दीं।