स्वामी सत्यदेव परिव्राजक ने अपनी अमेरिका यात्रा का एक संस्मरण इस प्रकार लिखा है।
“मेरा जूता एक जगह से फट गया था। मोची लड़के से उसकी मरम्मत के लिए कहा”। उसने जवाब दिया— “अभी तो मेरे हाथ में पिछला काम है। मैं आपका काम कर नहीं सकूँगा। हाँ! इतना हो सकता है कि आप मेरे औजार ले-लें और स्वयं ही यहाँ बैठकर मरम्मत कर लें।”
सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। मोची युवक भाँप गया। बोला— "आप हिन्दुस्तान से आए मालूम पड़ते हैं। जहाँ काम को छोटे और बड़े रूप में विभाजित किया जाता है। मैं एम. ए. का छात्र हूँ। अपना खर्च स्वयं इस व्यवसाय के माध्यम से चलाता हूँ और पढ़ाई मजे से चला लेता हूँ।
आप स्वयं जूते की मरम्मत कर लें। यह बहुत सरल काम है। साथ ही अपने देशवासियों को लौटने पर बताएँ कि अमरीकी नागरिक किस प्रकार श्रम का सम्मान करते हुए खुशहाल रहते हैं।