संगठन की प्रखर परिणतियाँ

February 1990

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गाँव के पंचायत-घर में काफी भीड़ थी। एक नजर देखने से लगता था जैसे समूचा गाँव उस व्यक्ति के इर्द-गिर्द जमा हो गया हो। इस जनसमुदाय से घिरे उस व्यक्ति के चेहरे पर विश्वास की आभा एक अनोखी दृढ़ता उसके असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी होने की गवाही दे रही थी।

उसके कंठ से स्वर उभरा— "बात क्या है? आप लोग इतने आतंकित क्यों हैं?"

"हम सभी डाकुओं से परेशान हैं। हम ही क्यों; समूचे बारदोली क्षेत्र की यही दशा है। सच कहा जाए तो हम लोक-चक्की के दो पाटों में पिस रहे हैं। एक पाट है— डाकू तो दूसरा है— पुलिस। डाकू लूट रहे हैं और पुलिस उन्हें पकड़ने में असफल है।"

उन दिनों वहाँ डाकुओं का आतंक कुछ ज्यादा ही था। दिन छिपते ही सब लोग अपने-अपने घरों में जा घुसते थे। बाहर एक बच्चा भी नजर नहीं आता था। डाकू संख्या में थोड़े होने पर भी पचासों ग्रामों के हजारों ग्रामवासियों का दिल दहला रहे थे।

अंग्रेज सरकार ने उन गाँवों की सुरक्षा के लिए पुलिस के दल-के-दल नियुक्त कर रखे थे, जिनका खर्च ग्रामवासियों को देना पड़ता था, जबकि ये डाकुओं को पकड़ने में नितांत असमर्थ होते थे। उन्हें सिर्फ अपने से मतलब था। डाकुओं से मुकाबला करना-भिड़ना भला उन्हें क्यों प्रिय होता?

बेचारे ग्रामवासियों ने इसी दोहरी मार से त्रस्त होकर उनका स्मरण किया था। वह आए और सारी बातें सुन रहे थे। उनके मन में न तो डाकुओं का डर था और न पुलिस की नाराजी की परेशानी।

"यह बात है? इस कारण आप सब डरे-सहमे हैं?" पूरी बात समझकर सिर हिलाते हुए उन्होंने अपना वाक्य पूरा किया।

गाँव वाले आशा की नजरों से उनकी ओर देख रहे थे। सबकी ओर एक नजर घुमाते हुए उन्होंने फिर बात शुरू की— "देखिए! बुराइयाँ भी अच्छाइयों के आधार पर खड़ी होती और इन्हीं से अपना पोषण प्राप्त करती हैं और कुछ नहीं, ये परजीवी की तरह हैं जो अपने आधार का खून चूसकर बढ़ता, फिर उसे समाप्त प्राप्त कर देता है। होना तो यह चाहिए कि बीमारी बढ़े, उसके पहले परजीवी बुराई नष्ट हो; पर ऐसा होता कहाँ है?"

"खैर हम तो यह देखें कि बुरे डाकू अपनी बुराइयों के लिए कहाँ से शक्ति प्राप्त करते हैं?"

"तो क्या दुर्दांत डाकुओं के भीतर भी कोई अच्छाई है?" सभी के स्वरों में आश्चर्य था।

"निश्चित ये हैं— संगठन, साहस, सावधानी और मनोबल। यही उनके शक्तिस्रोत हैं।"— उनने जिज्ञासा शांत की।

"अब हम सब क्या करें?"

"आप लोग इन्हीं गुणों को विकसित करें। तभी वह शक्ति अर्जित कर सकेंगे, जिसके बल पर इन डाकुओं को पछाड़ा जा सके।"

"किस तरह करें?"

इसके जवाब में उन्होंने गाँव के मुखिया से पूछा— "आप यह बताइए कि इस गाँव में कितने लोग रहते हैं?"

“सात सौ”

“इनमें से कितने हट्टे-कट्टे आदमी हैं; जवान और अधेड़।"

“कोई दो सौ”

"और डाकू कितने आते हैं डाका डालने?"

"यही कोई दस-पंद्रह, अधिक-से-अधिक पच्चीस मैं समझता हूँ।" हर घर में एक लाठी तो होगी, कुछ और हथियार भी होंगे। कई लोग इन्हें चलाना भी जानते होंगे। इस लिहाज से गाँववासियों की ताकत डकैतों से पाँच गुनी है, फिर अपने गाँव के रास्ते हमारे जाने-पहचाने हैं, डाकू तो यह भी नहीं जानते। हममें और उनमें अंतर यही है कि वे संगठित हैं, सावधान हैं, साहस के धनी हैं और हम ऐसे नहीं हैं, इसलिए उनका मुकाबला नहीं कर पाते। यद्यपि उनकी बुराइयाँ शीघ्र ही इन गुणों को नष्ट कर देंगी; पर अच्छा यही है इन गुणों को विकसितकर मुकाबले के लिए तत्पर हों। बात समझ में आ चुकी थी। गाँव में, उस गाँव और आसपास के सभी गाँवों में स्वस्थसमर्थ पुरुषों को लेकर व्यूह-रचना की गई। महिलाओं ने घर की जिम्मेदारी सँभाली। देखते-देखते डाकुओं का आतंक समाप्त हो गया।

आतंक की समाप्ति पर वह फिर आए और कहा— "जिन सद्गुणों के बल पर हमने बुराइयों को पछाड़ा है, उन्हें जीवित रखें और उनकी शक्ति का उचित नियोजन करें।" ग्रामवासी अपने गाँव के हित में सफाई, स्वास्थ्य, व्यायाम आदि अनेकों काम करने लगे। इन्हीं दिनों गाँधी जी ने सत्याग्रह शुरू किया। संगठित और बुराइयों के प्रति व्यूह-रचना में कुशल बारदोली क्षेत्र की जनशक्ति ने अनोखा चमत्कार दिखाया। देखने वालों की आँखें चकरा गईं। पत्रकारों ने लिखा— गाँधी का एक चेला एक साथ विस्मार्क और मेंजिनी बना घूम रहा है, किसकी ताकत है जो उसे हरा सके? यह गाँधी के शिष्य थे— बल्लभ भाई पटेल। जिन्हें वहाँ की जनता ने प्यार से सरदार का संबोधन दिया। बारदोली निवासियों का संबोधन पूरे देश का संबोधन बन गया।

बुराइयों के प्रति व्यूह-रचना संगठित प्रतिकार आज की सामयिक आवश्यकता है। धार्मिक क्रियाओं के नाम पर मूढ़मान्यताएँ, परंपराओं के नाम पर कुरीतियाँ तभी तक हैं जब तक हम उन्हें गले का हार समझकर लिपटाए हैं। जिस क्षण से असलियत पहचानी, उन्हें विषदंश करने वाला साँप समझा, उतार फेंकने के लिए सामूहिक प्रयास शुरू किए कि समूचा समाज स्वस्थ होता दिखाई पड़ेगा; पर इस युगांतरकारी कार्य के लिए शक्ति का स्रोत संगठन, साहस, सावधानी और मनोबल में है। ये महती शक्तियाँ हैं, जिसके आधार पर नवयुग का सृजन बन पड़ेगा।


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