बलि अपने समय के धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में सतयुग विराजता था।
सौभाग्य-लक्ष्मी बहुत समय तो उस क्षेत्र में रही पर पीछे अनमनी होकर किसी अन्य लोक चली गई
इन्द्र को असमंजस हुआ और इस स्थान परिवर्तन का कारण पूछ ही बैठे।
सौभाग्य-लक्ष्मी ने कहा- मैं उद्योग-लक्ष्मी से भिन्न हूँ। मात्र पराक्रमियों के यहाँ ही उसकी तरह नहीं रहती। मेरे निवास में चार आधार अपेक्षित होते हैं। (1) परिश्रम में रस (2) दूरदर्शी निर्धारण (3) धैर्य और साहस (4) उदार सहकार। बलि के राज्य में जब तक यह चारों आधार बने रहे तब तक वहाँ रहने में मुझे प्रसन्नता थी। पर अब जब सुसम्पन्नों द्वारा उन गुणों की उपेक्षा होने लगी तो मेरे लिए अन्यत्र चले जाने के अतिरिक्त और कोई चारा न था।