महाकाल का आमंत्रण (Kahani)

November 1986

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आज समय लेता अंगड़ाई। शब्द ब्रह्म चैतन्य हो रहा, ऋचा चाहती है तरुणाई।

जागो उपनिषदों के चिन्तन, मांग रहा तप, युग का क्रन्दन,

महाप्रलय का शंख बजाती सिर पर आन चढ़ी असुराई। आज समय लेता अंगड़ाई।

भस्मासुर शिवता पर झपटे, सर्वनाश, मानव को डपटे,

सभी दिशायें मूक देखती, महानाश कर रहा चढ़ाई। आज समय लेता अंगडाई।

अमृतपुत्र, तुम्हारा परिचय, इसमें कहां तनिक भी संशय,

होकर अभय वीर बलिदानी, तुमको करनी है अगुवायी। आज समय लेता अंगड़ायी।

तुम न रहोगे, कौन रहेगा, स्वर्ग, धरा की कौन करेगा,

उठो सृजन के समर सपूतो, महाकाल दे रहा बधाई। आज समय लेता अंगड़ाई।

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles