देवता फिर प्रकट हुए (kahani)

November 1986

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एक गोताखोर बहुत दिन से असफल रह रहा था। घोर परिश्रम करने पर भी कुछ हाथ न लगा। पेट भरने के लाले पड़ गये। कोई रास्ता सूझता न था।

सो, एक दिन उसने किनारे पर बैठ कर देवता की बहुत प्रार्थना की। आप सहारा न देंगे तो मैं जीवित कैसे रहूँगा।

देवता पसीजे। इस बार की डुबकी में उसे एक पोटली हाथ लगी। खोलकर देखा उनमें छोटे-छोटे पत्थर भर बंधे थे। दुर्भाग्य को उसने कोसा। देवता को निष्ठुर बताया और पत्थर के टुकड़ों को पानी में फेंकना आरंभ किया।

सोचने लगा अब वह गोताखोर का धंधा छोड़ेगा। कल से मछली पकड़ेगा, उसमें हाथों हाथ लाभ भी है और जोखिम भी नहीं। इन्हीं विचारों के बीच एक-एक करके पत्थर के टुकड़े भी वह फेंकता चला गया।

अन्तिम टुकड़े को ध्यान से देखा तो वह बहुमूल्य नीलम था। देवता के अनुग्रह से मिली इतनी राशि उसने अपने हाथों गंवा दी। इस पर भारी रंज प्रकट कर रहा था।

देवता फिर प्रकट हुए और बोले, तुम अकेले ही इस दुनिया में प्रमादी नहीं हो और जो बचा है, उसे बेचकर आज का काम चलाओ। समझ बढ़ाओ ताकि धन पाने का ही नहीं उनके उपयोग का भी हो सके।


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