एक असुर मुनि सत्संग से अहिंसा धर्म पालन करने लगा। उसने हिंसा छोड़ दी। वह एक गुफा में चिरकाल से रहता आ रहा था।
वर्षा हुई, भीगता हुआ व्याघ्र उस गुफा में घुस गया। असुर देर से आया। उसने आये हुए अतिथि की सुविधा का ध्यान रखते हुए स्वयं समीपवर्ती पेड़ के नीचे रात काटी। सवेरा होते ही व्याघ्र ने भीगते असुर का उपकार तो नहीं माना उल्टा उस पर आक्रमण करके मार डाला।
जो मुनि अहिंसा धर्म का उपदेश देते और दया उपकार की महिमा गाया करते थे उन्हें भी इस घटना को सुनकर दुःख हुआ और कहने लगे- पात्र कुपात्र का भी उदारता बरतते समय सतर्कतापूर्वक ध्यान रखना आवश्यक है।