क्या करें? क्यों करे? कितना करें?

November 1986

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चिन्तन क्षेत्र की अनेक गुत्थियां हैं। परस्पर विरोधी प्रतिपादनों से मनुष्य दिग्भ्रान्त जैसी स्थिति में जा पहुंचता है। किंकर्तव्य विमूढ़ जैसी स्थिति में वह सोचने लगता है कि इनमें से किस मार्ग को चुना और किस मार्ग को छोड़ा जाय।

कोई कर्तव्य को ही सब कुछ मानने का परामर्श देते हैं और किन्हीं का कथन है कि अधिकारों के लिए लड़ो अन्यथा चतुर लोग तुम्हारी सज्जनता का अनुचित लाभ उठाते और ठगाते।

कहा सुना जाता है कि भगवान जिस भी स्थिति में रखें, रह लो। किसी के दोष न देखो और सबको क्षमा करो। इसके ठीक विपरीत यह भी कहा जाता है कि प्रगति के लिए घोर प्रयासों का वरण करें। चैन से बैठने वाले आलसी बनते और दूसरों को अकर्मण्य बनाते हैं। क्षमा का अर्थ है, दुष्टता को निरन्तर बढ़ने के लिए प्रोत्साहन करना और समर्थन देना।

चतुरता अपनायें या भोले बनकर जियें। शठ के साथ शठता बरतें या उपहासपूर्वक उसे अपनी मर्जी पर चलने दें। बिच्छू का डंक कुचल दें या उसे बार-बार पानी में बहने या बार-बार निकालते रहने की उदारता दर्शायें।

नेकी मात्र सज्जनों के साथ बरतें या भले बुरे का विचार किये बिना हर किसी को उदार अनुदान दें। यदि “सब धान बाईस पसेरी” तोले जायेंगे तो फिर श्रेष्ठ और निकृष्ट के बीच अन्तर ही क्या रह जायगा? जब दुर्जन भी सहयोगी के समान और सहयोग के अधिकारी हैं तो कोई इन्हें छोड़ने या घटाने की बात क्यों सोचेगा? सहिष्णुता अपनाये रहेंगे तो फिर दुरात्माओं के कोल्हू में पिसने से किस प्रकार बच सकेंगे।

सबसे प्यार करो। यह कथन देखने और सुनने में बहुत सुहाता है, पर सबकी परिधि में तो दुरात्मा भी आते हैं। उन्हें प्यार देने या प्रसन्न करने में अपने स्वभाव, चरित्र और भविष्य का भी तो नाश होता है। भले और बुरे का अन्तर किये बिना यदि सभी से प्यार करने लगा जायगा तो दुनिया में अधिकांश लोग बुरे ही भरे पड़े मिलेंगे। प्रेम के नाम पर हम उन्हीं का समर्थन कर रहे होंगे और सहयोग दे रहे होंगे।

एक शिक्षा है मौन रहने की, एकान्त सेवन की, किसी से कुछ अपेक्षा न करने की। पर इसके बिना अपने अन्तराल का अमृत दूसरों पर कैसे बखेरा जा सकेगा। भटकों का मार्गदर्शन किस प्रकार बन पड़ेगा? किसी से कुछ अपेक्षा की जायगी तो उसे कर्मनिष्ठ और दायित्वों का वहन करने के लिए विवश कैसे किया जा सकेगा? ऐसे तो निष्क्रियता ही फैलती फूलती रहेगी।

यह ठीक है कि बुराई से दूर रहें, पर जहां गंदगी जमा है, वहां गंदगी जमा है, वहां से उसे हटाया और स्वच्छता की सुसज्जा बनाने का काम कौन लेगा? मल, मूत्र, पसीना, कफ आदि शरीर में निरन्तर पैदा होते हैं। सिर में जुंए और बिस्तर में खटमल भी पलते हैं, उन्हें हटाये बिना और कौन सा ऐसा कार्य है जिनसे बचकर रहा जा सकेगा। ऐसे तो मक्खी, मच्छर भी घर में बढ़ते रहेंगे, और हम उनसे दूर रहने के लिए पलायन की योजना बनाते रहेंगे।

समय का एक पल भी व्यर्थ न गंवाओ, सिद्धान्त के ठीक विपरीत यह है कि धैर्य रक्खें और प्रतीक्षा करें। दोनों बातें एक साथ कैसे निभ सकेंगी?

अच्छा यह है कि हम गुण, दोषों का वर्गीकरण और विश्लेषण करें किसी कथन को पत्थर की लकीर न मानें, विवेक से काम लें और जहां जितना औचित्य प्रतीत हो वहां उतना ही अपनायें।


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