सर्दी में सिकुड़ रहा था (kahani)

November 1986

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एक बूढ़ा किसी ठूँठ के नीचे बैठा सर्दी में सिकुड़ रहा था। पेड़ पर ऊपर की ओर दृष्टि डाली तो लगा कि वह भी उसी की तरह बूढ़ा हो गया है। बूढ़े ने अपने विगत वैभव की गाथा गाई और पेड़ के साथ सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा- तुम्हें भी मेरी ही तरह भाग्य ने सताया है न?

ठूँठ ने कहा- मैं तुम्हारे जैसा दुःखी नहीं हूँ। निकट भविष्य में बसंत आ रहा है। मैं उसी की सुखद कल्पना में खोया रहता हूँ और मोद बनाये रहता हूँ कि न जाने कितने और बसंत देखने मेरे भाग्य में बदे हैं। मेरे भाग्यवान होने की धन्यवाद दो और अपने भूत की चिंता कर स्वयं ही रोते रहो।


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