दृश्यमान व पदार्थ सम्पदा ही सब कुछ नहीं है जो गहराई में विद्यमान है, उसका भी महत्व है। पेड़ की छाया ऊपर दीखती है, पर जड़ें जमीन की गहराई में ही पाई जा सकती हैं।
समुद्र तट पर सीप और घोंघे बटोरे जा सकते हैं, पर मोती प्राप्त करने के लिए गहराई में उतरने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। भूमि के ऊपर रेत और चट्टानें भी बिखरी पड़ी हैं। पर बहुमूल्य धातुओं के लिए जमीन खोदकर गहरी परतों तक प्रवेश करना पड़ता है।
पराक्रम के बलबूते वैभव हस्तगत किया जा सकता है किन्तु मानवी गरिमा विकसित करने के लिए अन्तर्मुखी बनना और पैनी दृष्टि से दोष दुर्गुणों को बुहारना पड़ता है। दैवी विभूतियाँ जो अन्तराल में विद्यमान हैं, गहन चिन्तन का समुद्र मंथन करने पर ही हस्तगत हो सकती हैं। वैभव की तृष्णा एक लुभावनी चमक मात्र है। पर आन्तरिक सत्प्रवृत्तियों का परिपोषण रत्नों को खोद निकालने के समान है।
सौंदर्य बाहर दीखता है, पर वह वस्तुतः नेत्रों की ज्योति, अभिरुचि एवं आत्मीयता का समुच्चय मात्र है। अच्छा हो हम अपने अन्तर का खजाना खोजें और उन विभूतियों को प्राप्त करें जो अपने कल्याण तथा समष्टि के कल्याण के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक हैं।