वशिष्ठ ने राम को कथा सुनाया। कहा- “एक जादूगर राजा की सभा में पहुंचा और उसे विचित्र दृश्य दिखाया। मोर पंख का पुछारा उसके ऊपर तीन बार फिराया। राजा को सिंहासन पर बैठे-बैठे ही गहरी नींद आ गई और प्रत्यक्ष लगने वाला स्वप्न देखना आरंभ कर दिया। देखा- किसी राजा ने उसे भेंट में एक बहुमूल्य घोड़ा भेजा है। वह उस पर सवार हो गया। घोड़ा तेज चाल से चला और मर्जी का रास्ता पकड़ा। राजा द्वारा पकड़ी लगाम की उसने तनिक भी परवा न की। बहुत दूर जाने पर राजा को अपनी विवशता का डर लगा। वह घोड़ा जैसे ही एक आम्र वृक्ष के नीचे से निकला उसने डाली पकड़ ली और पेड़ पर चढ़ गया। उतरा तो भूख प्यास और थकान से वह चूर हो रहा था। इतने में देखता क्या है कि सामने से एक अत्यंत कुरूप नवयुवती कन्या अपने पिता के लिये उबले चावल और जामुन का मद्य बना कर ले जा रही है। राजा ने प्रार्थना की। इसमें से उसे भी थोड़े मिलें तो उसके प्राण बचें। चाण्डाल कन्या ने पहले तो स्पष्ट इन्कार कर दिया, पर पीछे सोच समझकर कहा- आप मुझ से विवाह कर लें और आजीवन मेरे ही घर रहें तो मैं आपको भोजन दे सकती हूँ। राजा ने स्वीकृति दे दी। खाना खा पीकर उसके पीछे-पीछे चल दिये। उसके झोंपड़े में हड्डियाँ, माँस, चमड़ा जैसी चीजें लटक रही थीं। पर मन मारकर राजा को वहीं रहना पड़ा। धूम धाम से उसी झोपड़ी में उसका विवाह हुआ क्रमशः कन्या के पेट से तीन पुत्र और तीन कन्याएँ जन्मीं। अपने निजी राज्य को तो वह सर्वथा भूल ही गया।
उस क्षेत्र में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। राजा अपने छहों बच्चों और पत्नी को लेकर किसी सुविधा वाले प्रदेश के लिए चल पड़ा। रास्ते में उनके बच्चों के प्राण भूख से निकलने लगे। कोई और उपाय न देख कर राजा ने ईंधन इकट्ठा किया और उसमें अपना शरीर चलाते हुए कहा। आज तुम इसी माँस को खाकर अपनी तृप्ति करो।
उस स्वप्न दृश्य को देखने में दो घंटे लग गये। जादूगर ने मोर पंख का पुछारा फिर उसके सिर पर फिराया सो वह फिर जागृत अवस्था में आ गया। स्वप्न उसके मन पर से उतर ही नहीं रहा था।
राम ने वशिष्ठ से पूछा- वह राजा कौन था। चाण्डाल कन्या कौन थी? वशिष्ठ ने कहा- अज्ञानी मनुष्य ही राजा है और वह मायाग्रस्त मन को बंधनों में बंधा कर जीवन भर ऐसी ही अनुभूतियाँ करती रहती है।