राजा चित्रकेतु के कोई संतान न थी। आयु ढलने पर उनके एक पुत्र हुआ। वह देखने में सुन्दर और क्रीड़ाओं में मनोरंजक था। पर वह अधिक समय जीवित न रहा। पाँच वर्ष की आयु में ही उसका देहान्त हो गया। सारा राज परिवार शोक मग्न रहने लगा।
इसी बीच महर्षि अंगिरा वहाँ आ गये। और उस मृतात्मा को बुलाकर वार्त्तालाप करा देने का आग्रह करने लगे। अंगिरा ने अपने योगबल से वैसा ही किया।
मृत पुत्र का सूक्ष्म शरीर आया उसने अंगड़ाई लेते हुए कहा- आप लोग किस जन्म में मेरे पिता रहे, यह बताएं? अब तक सौ जन्मों का विवरण मुझे याद है। मरने पर परिवार और संबंध के लिए कुछ दिन रोते रहे, बाद में प्रकृति के नियमानुसार उन सब का शोक शान्त हो गया। आप लोग भी कुछ समय में संतोष कर लेंगे।
राजा और रानी ने कहा- तो तुम अब हम लोगों के बीच नहीं रहोगे? पुत्र ने कहा- मुझे अपने प्रारब्ध भुगतने दें और आप अपने भुगतें। यह कहते हुए वह आत्मा परलोक वापस लौट गई। राजा रानी को बोध हो गया।