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November 1986

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एकाकी मत रहो अन्यथा अशक्त रहोगे। मिल-जुल कर रहने वाले तृणों से हाथी बाँधने वाला रस्सा बनता है।

स्वामी रामतीर्थ का भी देहावसान इसी दिन हुआ। वे टिहरी के समीप गंगा की पवित्र गोद में समा गये। वे वेदान्त के अनुयायी थे, आत्मा में परमात्मा की ज्योति सत्ता का दर्शन करते थे, साथ ही उन्होंने सब में एकात्मा के समावेश होने के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। “आत्मवत् सर्वभूतेषु” की सनातन मान्यता को उनने और भी प्रखर किया।

स्वामी दयानन्द का देहावसान भी दीपावली को हुआ। वे एक चले गये, पर अपने पीछे अनेकों ऐसे ज्वलन्त दीपक छोड़ गये, जिनने तर्क और श्रद्धा का समन्वय किया और विवेक को प्रतिष्ठा दी।

दीपावली ज्योति पर्व है। भीतर और बाहर फैले हुए अन्धकार को निरस्त करने के लिए कटिबद्ध होने की उसमें प्रेरणा है। हम स्वयं प्रकाशवान बनें और समूचे वातावरण को जगमग बनायें, यही उत्साह हर वर्ष हम इस पावन पर्व से प्राप्त करते हैं।


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