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November 1986

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अगर किसी और को न रोक सको तो कम से कम जुबान पर जरूर लगाम लगाओ, ताकि वह कटु वचन बोलने की उद्दंडता न कर पाये।

विचारों और क्षमताओं का आदान-प्रदान इस आकर्षण शक्ति के सहारे भी हो सकता है। पर यह द्विपक्षीप होना चाहिए। टेलीफोन के दोनों सिरों पर विद्युत प्रवाह होना चाहिए। एक ओर बिजली न हो तो वह काम नहीं करेगा। रेडियो ब्राडकास्ट व्यापक अन्तरिक्ष में फैलता है पर उसे पकड़ा सुना वहीं जा सकता है जहाँ रेडियो या ट्रांजिस्टर उपकरण भी विद्यमान हों। हवा मात्र के माध्यम से वायरलैस नहीं सुना जा सकता है। सामान्य शब्दों की गति धीमी होती है, थोड़ी ही दूर तक चलकर समाप्त हो जाती है। किन्तु इसी वाणी से जब विद्युत प्रवाह जुड़ जाता है तो संसार के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक पहुँच जाती है।

कछुवी रेत में अण्डे देती है स्वयं पानी में चली जाती है किन्तु वहीं से अपनी प्राण शक्ति अंडे तक भेजती रहती है। उस पोषण के सहारे वह पकता और पलता रहता है। यदि किसी कारणवश इसी बीच कछुवी की मृत्यु हो जाती है तो बालू में गड़ा हुआ अंडा वहाँ सड़ जाता है। पकता और बढ़ता नहीं। यही बात सिद्ध पुरुषों में भी देखी गई है। वे अपने वरिष्ठ शिष्यों को अपनी शक्ति हस्तान्तरित करते रहते हैं। उन्हें इसके लिए समीप जाने और आने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह कार्य टेलीविजन की तरह होता रहता है और एक स्थान के दृश्य एवं कथन दूसरे स्थान तक पहुँचते रहते हैं। अध्यात्म प्रयोजनों में इसके साथ-साथ शक्ति भी चलती है। जनरेटर अपने स्थान पर गतिशील रहता है पर तारों के माध्यम से उसकी शक्ति दूसरे स्थानों तक जा पहुँचती है और अपनी शक्ति से छुट-पुट उपकरणों को भी भली भाँति चलाता रहता है।

सभी सिद्ध पुरुष आदि से अन्त तक शक्ति उपार्जन पूरे का पूरा स्वयं ही नहीं कर लेते। ऐसा करने में ही उसे क्रमिक विकास के अनुसार हजारों वर्ष भी लग सकते हैं। पर जल्दी तब होती है जब शिष्य को अनुदान में यह सब भी मिलता रहता है। विवेकानन्द के पास अपना निज का उपार्जन नहीं था। उन्हें वह रामकृष्ण परमहंस से अनुदान में मिला था। इसी प्रकार साधना क्षेत्र में अनुदानों के और भी अनेक उदाहरण हैं।

गुरुदेव को उनके हिमालय वासी गुरु के अनुदानों का अनुग्रह सर्वविदित है। इन्हीं के सहारे उनसे विगत जीवन में वह कार्य बन पड़े जो दस समर्थ व्यक्ति मिलकर भी नहीं कर सकते।

विगत बसंत पर्व पर सत्र में आये हुए परिजनों से कहा था कि आप लोग किसी पूछताछ के लिए हरिद्वार आने का कष्ट न उठाया करें और इतना किराया भाड़ा खर्च न किया करें। दूर प्रेषण की इतनी सिद्धि तो हमें अपनी दो वर्ष की साधना में ही मिल गई है कि आवश्यकता पड़ने पर हम आप में से किसी आमंत्रित करने वाले तक अपने विचारों का सम्प्रेषण कर सकें।

इसका सरल तरीका यह है कि रविवार के दिन प्रातःकाल शुद्ध होकर दस बार लम्बी सांसें खींच। इसमें छाती से लेकर पेट तक पूरी सांस भरी जानी चाहिए और फिर धीरे-धीरे उसे पूरी तरह बाहर निकाल देना चाहिए। इसके बाद दाहिना हाथ दस बार सिर पर पीछे से आगे की ओर फिराया जाय। ऐसा करने से अपने निज के प्रश्न, निज के कल्पनात्मक उत्तर बाहर निकल जायेंगे। मस्तिष्क खाली हो जायेगा। नेत्र बन्द कर लें। ध्यान करें कि हरिद्वार से हमारी जिज्ञासाओं का उत्तर अन्तरिक्ष के माध्यम से चला आ रहा है और अपने मस्तिष्क में उभर रहा है। इसके उपरांत नये प्रकार के विचार मस्तिष्क में भ्रमण करना शुरू करेंगे। इन्हें ध्यानपूर्वक समझें और अपनायें। प्रतीत होगा कि आपकी समस्याओं का ऐसा समाधान सुझाया गया है जिससे प्रस्तुत कठिनाई का निराकरण भी हो जाय और नैतिक स्तर पर आप यथावत् बने रहें और आगे बढ़ते रह सकें।

उपरोक्त उपचार मात्र साँसारिक समस्याओं के समाधान संदर्भ में ही नहीं हैं वरन् इस दृष्टि से भी हैं कि जिन्हें आन्तरिक प्रगति और शान्ति की अपेक्षा है वे भी अभीष्ट आवश्यकता की पूर्ति कर सकें।


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