महाभारत व्यास जी ने बोला और गणेश जी ने लिखा जब तक यह लेखन कार्य चला गणेश जी मौन धारण किये रहे ताकि वाचालता के कारण एकाग्रता भंग न हो और इतनी तेजी से लिखने का दायित्व ठीक तरह निभ सके।
“लोक सेवा और धर्मोपदेश सामयिक कार्य हैं। वे कुछ ठहर कर भी किए जा सकते हैं। पर जिसको जो करना है, उसकी योग्यता पहले प्राप्त करनी पड़ती है। तुम सेवा कार्यों के साथ सत्साहस एवं आत्मानुशासन को भी जोड़ कर चलो, क्योंकि आन्तरिक दुर्बलताओं के रहते सेवा-कार्य बन नहीं पड़ता। पहले क्षमता अर्जित करो, फिर कार्य क्षेत्र में उतरो। पहले अपनी दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा पाओ और उसके बाद जनकल्याण का कार्य हाथ में लो।”