नाले का पानी सड़ रहा था। शिष्यों ने गुरु से पूछा- पिछली बार जब हम इधर से निकले थे तो न सड़न थी न बदबू। अब की बार यह कैसे उत्पन्न हो गई?
गुरु ने कहा- “प्रवाह रुक गया है। जो बहता नहीं वह सड़ेगा ही।?
तो फिर क्या उस विपन्नता से त्राण का कोई मार्ग नहीं है?
शिष्यों का समाधान करते हुए गुरु देव बोले- प्रायश्चित्त की मूसलाधार वर्षा होते ही यह सड़न आगे बढ़ेगी और दुर्गन्ध से त्राण मिलेगा।
गुरु का अभिप्राय था, कृपणता द्वारा उदारता का बहाव अवरुद्ध कर दिए जाने का दुष्परिणाम समझाना साथ ही यह बताना है कि उदारता के उफान द्वारा ही इस स्थिति का निराकरण होगा।