( 1 )
शक्ति निबल की सदा किया रक्षा करती है।
वह जग में सुख शान्ति न्याय समता भरती है ।।
छात्र तेज से ही जग को शासन होता है ।
इसके कारण ही मानव सुख से सोता है ।।
यदि न रहे तो जग में हिंसा ही छा जाये ।
मानव कहलाने वाला पशु ही कह लाये ।।
( 2 )
यह गुण थोड़ा बहुत सभी में रहता आया ।
ऐसा कोई नहीं, नहीं है जिसने पाया ।।
साहस, धैर्य, पराक्रम इसके ही स्वरूप हैं,
निर्भयता पुरुषार्थ इसी के भिन्न रूप हैं ।।
यह आत्मा का वह प्रकाश जो अजर अमर है ।
यह शिव सुन्दर और सत्य का शाश्वत स्वर है ।।
( 3 )
कभी कभी हैं शक्तिवान् हो जाते घातक ।
निवलों के उन्नति पथ पर हैं बनते बाधक ।।
वे हैं अपने बल का अनुचित लाभ उठाते ।
ऐसे नर हैं घृणा और अपयश ही पाते ।।
शक्ति न्याय की दासी होकर के रहती है ।
बिना न्याय के स्वयं शक्ति सत्ता ढहती है ।।
( 4 )
लख कर के अन्याय दुःखी होती हैं आत्मा ।
क्योंकि छिपा प्रति मानव में ही हैं परमात्मा ।।
मानव का शोषण परमात्मा का शोषण है ।
व्याप्त ब्रह्म के वैभव से जग का कण-कण है ।
गायत्री का (स) अक्षर यों सिखलात है ।
( 5 )
क्षत्री वह जो छत्र न्याय-रक्षा का बनता ।
जिसकी छाया में सुख से सोती शान्ति प्रिय जनता ।।
शोषण, स्वार्थ अनीति, न जिसको कभी सुहाते ।
जिसे नहीं संकोच दुष्ट से लड़ते, प्राण गंवाते ।।
मानवता की मर्यादा का जो प्रतीक प्रहरी है ।
क्षत्रिय की आत्मा वृत से, संयम से हरी भरी है ।।