[ 1 ]
एक मात्र यह धर्म बना है जीवन का आधार ।
आश्रित हैं इस पर ही सारे जग के कारोबार ।।
बिना धर्म के क्षर भर भी जीवित रहना दुष्कर है ।
इसके कारण ही मानव का जीवन यह सुखकर है ।।
व्यापक बहुत अधिक है इसकी इस जगती पर महिमा !
देवों ने है स्वयं बखानी इसकी पावन महिमा !!
[ 2 ]
यह वह सुरसरि जिसमें सारे पापों का होता लय ।
सत्य और शिव सुन्दर से होता है सच्चा परिचय ।।
जाति पांति का ऊंच नीच का यहां न कोई अन्तर ।
यहां सुनाई देता केवल मानवता का ही स्वर ।।
पुण्य प्रकृति के ही समान यह व्यापक अजर अमर है !
प्रभु की अविचल, सत्ता की यह करुणामयी लहर है !!
[ 3 ]
कथा पन्थ में कर्मकाण्ड में सीमित धर्म नहीं है ।
इन तक सीमित रह पाते मानव के कर्म नहीं हैं ।।
रहता सच्चा धर्म सदा कर्त्तव्यों के पालन में ।
संयम नियम लोक-सेवा के दृढ़ तक अवलम्बन में ।।
इसके बिना व्यर्थ-सा होता है सारा आडम्बर !
धर्म-भाव को अपने में धारण कर बनो धर्मधर !!
[ 4 ]
देख दूसरों को अधर्म के पथ पर चरण बढ़ाते ।
बुद्धिमान होते न कभी विचलित और न ललचाते ।।
इसके क्षण भर के वैभव को देख न चित्त डुलाओ ।
जो कांटे से लगा मांस का टुकड़ा वह मत खाओ ।।
अन्यायी का पतन बहुत ही शीघ्र पूर्ण निश्चित है !
युग-युग से बतलाती आती परिवर्तन की गति है !!
[ 5 ]
धर्म-ज्योति मानव के अन्तर में सदैव है जलती ।
इसके ही प्रकाश में है मानवता—आगे चलती ।।
दूर दूर तक सभी ओर है यह प्रकाश फैलाती ।
भूले भटके प्राणी को यह लक्ष्य मार्ग दिखलाती ।।
इस प्रकार से आलोकित जिसका तन मन जीवन है !
सफल उसी की धर्म धारणा धन्य-धन्य वह जन है !!