सचित्र गायत्री-शिक्षा

शिष्टाचार और सहयोग

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
[ 1 ] करो सदा व्यवहार दूसरों के संग वैसा । अपने प्रति व्यवहार चाहते हो तुम जैसा ।। शूलों को वो कौन फूल को पा सकता है । कटुता दिखला कब कोई अपना सकता है ।। शिष्टाचार हृदय को सम्मोहित करता है ! जीवन के पथ पर पवित्र मंगल भरता है !!

[ 2 ] मिल जुल कर चलने से यह सामाजिक जीवन । हो जाता है सरल, सुखद, दुःख, ताप विमोचन ।। औरों को समझो, जैसे हों—वे भी परिजन । हो ऐसा व्यक्तित्व कि जिसमें हो आकर्षण ।। औरों की भूलों को जैसे भी हो भूलो ! तुम गुलाब के सदृश विश्व उपवन में फूलों !!

[ 3 ] जो दुःख में दें साथ लोग वे हैं उपकारी । दे उनको सम्मान रहो उनके आभारी ।। करो सदा उपकार किन्तु प्रतिकार न चाहो । जितना भी संभव हो निज कर्तव्य निभाओ ।। कोई भी शुभ कर्म व्यर्थ है कभी न जाता ! भला कौन सा फूल नहीं सौरभ बिखराता !!

[ 4 ] यह है सबको ज्ञात कि नर सामाजिक प्राणी । अखिल विश्व को मुखरित करती उसकी वाणी ।। सत्य और शिव सुन्दर का ही वह स्वरूप है । उसका अन्तर देवों का ही एक रूप है ।। मानवता के कण कण मिलते बनती संस्कृति ! जुड़ी हुई कड़ियां न कभी होने देती यति !!

[ 5 ] शिष्ट पुरुष निज अतियों की सेवा करता है । और हर्ष से अपना भव्य हृदय भरता है ।। सेवा को है वह अपना कर्तव्य समझता । है सेवा के पथ पर क्षण भर कभी न रुकता ।। ऐसा नर सम्मान सदा जग में पाता है । विश्व, स्नेह सहयोग उसी पर बरसाता है ।।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118