सचित्र गायत्री-शिक्षा

आपत्तियों में धैर्य

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
षाराणां प्रपातेऽपि प्रयत्नो धर्म आत्मनः । हिमा च प्रतिष्ठा च प्रोकेऽपारः श्रमस्यहि ।।

अर्थ—आपत्ति ग्रस्त होने पर भी सत्प्रयत्न का करना आत्मा का धर्म है। प्रयत्न की महिमा और प्रतिष्ठा अपार कही गई है।

ज्ञातव्य मनुष्य जीवन में विपत्तियां, कठिनाइयां, विपरीत परिस्थितियां, हानियां और कष्ट की घड़ियां भी आती ही रहती हैं। जैसे कालचक्र के दो पहलू—काल और दिन है, वैसे ही संपदा और विपदा, सुख और दुःख भी जीवन रथ के दो पहिये हैं। दोनों के लिए ही मनुष्य को धैर्य पूर्वक तैयार रहना चाहिए। आपत्ति में छाती पीटना और सम्पत्ति में इतराकर तिरछा चलता दोनों ही अनुचित हैं।

आशाओं तुषारपात होने की—निराशा, चिन्ता, भय और घबराहट उत्पन्न करने वाली उपस्थिति आने पर भी मनुष्य को अपना मस्तिष्क असन्तुलित नहीं होने देना चाहिए। धैर्य को स्थिर रखते हुए, कठिनाइयों के साथ सजगता, बुद्धिमत्ता, शान्ति और दूरदर्शिता के साथ निपटने का प्रयत्न करना चाहिए। जो कठिन समय में भी हंसता रहता है, जो नाटक के नटों की भावना से अपने जीवन का खेल खेलता है वास्तव में वही बुद्धिमान है। गायत्री की शिक्षा में श्रद्धा रखने वाले को ऐसा ही बुद्धिमान बनना चाहिए। समयानुसार बुरे दिन तो निकट जाते हैं पर वे जाते समय अनेक अनुभवों, गुणों तथा योग्यताओं का उपहार दें जाते हैं। कठिनाइयां मनुष्य को जितना सिखाती हैं उतना दस गुरु मिल कर भी नहीं सिखा सकते। संचित प्रारब्ध भोगों का बोझ भी उन आपत्तियों के साथ उतर जाता है। आपत्तियां हमारे विवेक और पुरुषार्थ को चुनौती देने आती हैं और जो उस परीक्षा में उत्तीर्ण होता है उसके गले में कीर्ति प्रतिष्ठा योग्यता और बुद्धिमत्ता की जयमाला पहनाई जाती है।

गायत्री का ‘तु’ अक्षर कहता है कि भूतकाल से अभिज्ञ वर्तमान के प्रति सजग और भविष्य के प्रति निर्भय रहो। मनुष्य को अच्छी से अच्छी आशा करनी चाहिए किन्तु बुरी से बुरी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। मानसिक संतुलन को सम्पत्ति या विपत्ति किसी भी दशा में नहीं बिगड़ने देना चाहिए। वर्तमान की अपेक्षा अधिक उपयुक्त दशा में पहुंचने का पूर्ण प्रयत्न करते रहना तो आत्मा का स्वाभाविक धर्म है परन्तु कठिनाइयों से घबरा जाना उसके गौरव के विरुद्ध है।

चित्र में एक धीर पुरुष अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ रहा है। प्रलोभनों को पीछे छोड़ता है और भयंकर कठिनाइयों में जरा भी भयभीत नहीं होता, ऐसा ही धैर्य, साहस, उत्साह एवं विवेक गायत्री उपासक में होना अपेक्षित है।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118