सचित्र गायत्री-शिक्षा

पवित्र जीवन

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पवित्रता जीवन का पावन लक्ष्य परम सुखदायी । इससे ही सबने शीतलता, शान्ति, प्रतिष्ठा पाई ।। मन से दूर हटाओ सारे पाप मैल का करकट । शुद्ध करो बोझिल आत्मा को खोलो अंतर के पट ।। करके दूर मलिनता अपना शुद्ध रूप पहचानो ! मानवता की गुरुता को ओ, मानव अब तो जानो !!

[ 2 ] है आलस्य, पतन, दरिद्रता, पाप विश्व में व्यापक । इनसे रहना दूर सदा ही है तुझको आराधक ।। जो है इनमें लिप्त गन्दगी है उनके प्रति कण में । सुरुचि और सात्विकता उनसे बहुत दूर जीवन में ।। है सौन्दर्य, सरलता, सात्विकता, गुरुता, दृढ़ता में । जीवन का उत्थान हृदय की मंजुल पावनता में ।।

[ 3 ] है अशुद्धता दूर हटा देता सौंदर्य पुजारी । जैसे सुमन प्रगट कर देती भरी खाद से क्यारी । है सौंदर्य तथा कुरूपता साथ नहीं चल पाते । जो जिसके इच्छुक वे जन है वही वस्तु पा जाते ।। आलस मद में लीन व्यक्ति से दूर शुद्धता रहती । उनके गृह उपवन में कब सुरसरि की धारा बहती ।।

[ 4 ] आत्मा सुन्दर है, पवित्र है, पवित्रता सुखकर है । मानव मन का उन्नायक है शुद्ध और सुन्दर है ।। निज के और स्वजन के हित है पवित्रता हितकारी । साधारण सी वस्तु शुद्ध हो, हो जाती है प्यारी ।। श्रेष्ठ आचरण, तन मन अपना शुद्ध पवित्र बनाओ । मानव बनकर कम से कम तुम मानवता तो पाओ ।।

[ 5 ] पवित्रता का वृक्ष मनोहर जिसकी छह शाखायें । फैली हुई विटप के ऊपर नीचे दांये बायें ।। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यावहारिक । इन सब से भी कहीं श्रेष्ठ है पवित्रता आध्यात्मिक ।। ये सब सरितायें मिलकर करतीं मानव को सागर ! है पवित्रता जहां वहीं रहता सुख भीतर बाहर !!
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