औरों का अनहित करके भी जो अपना हित करते ।
स्वार्थ-कलश अपने कर्मों से वे जीवन भर भरते ।।
अपने और अन्य के हितका कर समुचित सम्मेलन ।
इष्ट मार्ग पर बढ़ते जाते हैं व्यवहार कुशल जन ।।
पर इस जग में ऐसे भी तो हैं उदार कुछ प्राणी !
करके सब कुछ त्याग अन्य के हित बनते वरदानी !!
[ 2 ]
प्रथम कोटि के व्यक्ति असुर हैं भू का भार बढ़ाते ।
है परलोक न बनता इनका जीवन व्यर्थ गंवाते ।।
इनके द्वारा कभी न सम्भव मानवता पर छाया ।
फैलाते रहते ये जग में हैं पशुता की माया ।।
ये जग में अगणित हैं जैसे निशि में घिरा अंधेरा !
जिसे मिटा देता है ज्योतित राशि तारों का फेरा !!
[ 3 ]
बुरा नहीं लेने देने का सरल समन्वय जग में ।
प्रायः शूल हटाता रहता यह जीवन के मग में ।।
अपनी सेवाओं से औरों का हित यह कर देते ।
पर उसके बदले में उसका मूल्य गृहण कर लेते ।।
सभी लोक व्यवहार इसी गति पर रहते अवलम्बित !
इस मन्थन श्रेणी की संख्या इस जग में रहती सीमित !!
[ 4 ]
वे श्रद्धा के पात्र कि जिनने सदा लुटाना सीखा ।
बहु जन हित सब कुछ ही कृष्णार्पण कर जाना सीखा ।।
आत्मत्याग का भाव हृदय में बड़ा कठिन ला सकना ।
एक बार इस पथ पर चलकर सदा असम्भव रुकना ।।
देव तुल्य वह नर हम सबके श्रद्धा के अधिकारी !
विश्व शान्ति मन्दिर के यह हैं सबसे सफल पुजारी !!
[ 5 ]
सींच-सींच जीवन से माली ने पादप उपजाये ।
आस-पास के शूल व्यर्थ के वृक्ष समूल मिटाये ।।
इसी परिश्रम फल से उसमें सुमन मनोरथ आये ।
सौरभ जग में लुटा, तुष्टि कण पर माली ने पाये ।।
यह परमार्थ पंथ, जो इस पर चलने का वृत लेते !
वे युग-युग के लिए विश्व में नाम अमर कर देते !!