सचित्र गायत्री-शिक्षा

सर्वतोमुखी उन्नति

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विज्ञ-जनों को एकांगी उन्नति से तुष्टि न मिलती, सर्वोदय के बिना शान्ति की कलिका है कब खिलती । इस शरीर के सब अंगों को स्वस्थ बिना रख पाये, कैसे कोई व्यक्ति पूर्णतः स्वास्थ्य लाभ कर पाये ।। एक अंग की वृद्धि अहितकर ही प्रायः हो जाती ! इसका वेग बुझा देता है सर्वोन्नति की बाती !!

[ 2 ] जैसे कुशल किसान खेत की रक्षा करता सब विधि । सेनापति रक्षित रखता सब साधन से जय की निधि । कहीं कभी की किसी ओर से आ न शिथिलता पाये, एक भूल के कारण जीती बाजी हार न जाये ।। वातावरण नहीं सीमित है एक दिशा में केवल ! एकांगी उन्नति से कोई काम नहीं सकता चल !!

[ 3 ] सूखे हुए वृक्ष पर हंसता सुमन नहीं सुखदायी, है लहरों के बिना अधूरी सरिता की तरुणाई । है प्रकाश के बिना सूर्य का ताप कौन सह सकता, शीतलता से वंचित शशि का वैभव सूना लगता ।। सब गुण ही मिलकर के पूरा हैं व्यक्तित्व बनाते ! एक दोष के कारण ही हैं सारे गुण छिप जाते !!

[ 4 ] विद्या, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, धन का वैभव रहा अधूरा, साहस, मित्र, चतुरता ने यदि किया न उसको पूरा । और आत्मबल है इन सबमें नई शक्ति भर देता, इस सबका संगम मनुष्य को पूर्ण पुरुष कर देता ।। यदि इनमें से कभी एक भी बल है कम हो जाता ! तो मनुष्य का सारा संचित वैभव है खो जाता !!

[ 5 ] साधक बैठा हुआ खेलते आठ पुत्र मृदु मंजुल, हैं स्वरूप रखकर के आये पूर्ण पुरुष के यह बल । इन सबके मिल जाने पर ही साधक सुख पाता है, घटता है आनन्द एक भी इनमें घट जाता है ।। युग-युग तक पूजी जायेगी पूर्ण पुरुष की प्रतिमा ! है देवों से ऊपर मानव और मनुज की गरिमा !!
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