सचित्र गायत्री-शिक्षा

प्राण घातक व्यसन

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[ 1 ] जीवन में प्रत्येक व्यसन ही है दुःख दायी । इनके कारण ही नर से पशुता अपनाई ।। कोई भी हो व्यसन, साथ यदि पड़ जाता है । उन्नति के पथ पर कंटक बन अड़ जाता है ।। क्षण भर का आनन्द देख जो रत हो जाते ! वे कंचन—सा जीवन मिट्टी सदृश जुटाते !!

[ 2 ] जो भी नर मादक द्रव्यों का सेन करता । वह निश्चय पूर्वक विनाश पथ पर ही बढ़ता ।। ऊपर से ये द्रव्य मित्र-सा रूप दिखाते । अन्दर घुस बन शत्रु प्राण में आग लगाते ।। मित्र रूप में शत्रु अरे यह कैसा छल है ! सर्व नाश कर सकते इतना इनमें बल है !!

[ 3 ] विषय, विकार विनोद व्यसन जग में बहुतेरे । जो जीवन में शूल सदृश हैं घिरे घनेरे ।। पग में चुभ जाते पंथी को करते आहत । कर लेते स्वच्छन्द प्रयासी को निज अनुगत ।। नाच राग इत्यादि इसी क्रम में आते हैं ! जीवन में वैषम्य बहुत—सा उपजाते हैं !!

[ 4 ] बुद्धिमान इस मृग मरीचिका से बचते हैं । अपने हाथों नहीं चिता अपनी रचते हैं ।। अस्थिर चित नर ही प्रायः इन में फंस जाते करते जीवन व्यर्थ और पर लोक नसाते ।। संयम से जो नर जीवन यापन करते हैं ! व्यसन कभी भी पास न उनके आ सकते हैं !!

[ 5 ] हमें उचित है मित्र और रिपु को पहचानें । व्यसन शत्रु हैं कभी न उनको हितकर मानें ।। जहां असुरता वहां दिव्यता कहां टिकेगी । व्यसनी को कैसे सन्मति की सुधा मिलेगी ।। फूंक फूंक पग रखो, प्रलोभन में मत विहरो ! रहो संयमी सजग, जगत में निर्मय विचरो !!
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