( 1 )
गायत्री है जगज्जननि वेदों की माता ।
स्मृति, शास्त्र, पुराण, ज्ञान विज्ञान विधाता ।।
जड़ चेतन में प्रगति प्रेरणा आशा भरती ।
सत चित आनन्द रूप सत्य शिव सुन्दर करती ।
इस संवल को पकड़ पार हम भव बंधन से होते ।
इस गंगा में कलुष कल्मषों को हैं जग जन धोते ।।
( 2 )
धर्म नीति, विज्ञान, ज्ञान का तत्व छिपा है इसमें ।
परमब्रह्म का इतना ज्यादा है रहस्य प्रिय किसमें ।।
योग-तंत्र, ज्योतिषीय आदि इसके अनुचर हैं ।
देव असुर भी हुए न इसकी सीमा के बाहर हैं ।।
कैसे बन्दी हो शब्दों में गायत्री की महिमा ।
( 3 )
इसके प्रति अक्षर में ही हैं छिपी एक प्रिय शिक्षा ।
जो देती युग युग से मानव को पशुचिता की दीक्षा ।।
प्रस्तुत पुस्तक में शिक्षायें करी गई एकत्रित ।
जो कविता में व्यक्त और जो है चित्रों में चित्रित ।।
नियम यही इन शिक्षाओं को जन प्रतिजन अपनाये ।
इसके द्वारा होने वाले शुभ फल को भी पाये ।।
( 4 )
भूला नर अध्यात्म इसी से कष्ट बढ़े है जग में ।
शूल बिछे हैं इसीलिए तो जीवन के शुभ मग में ।।
नष्ट हुआ इससे ही जग का सारा उन्नति क्रम है ।
बदले जग में बदला सब कुछ सत्य बन गया भ्रम है ।।
जग को पुनरोद्धार स्वयं कर सकती है गायत्री ।
फिर से सुख सम्पत्ति शान्ति भर सकती है गायत्री ।।
( 5 )
सुनते हैं सब लोग ध्यान से पुण्य मन्त्र गायत्री ।
दुःख मोचन, सुखकारी सुन्दर दिव्य तंत्र गायत्री ।।
अन्धकार मय जीवन पथ पर है प्रकाश गायत्री ।
मानव को दैवत्व प्राप्ति के हित प्रयास गायत्री ।।
गायत्री है परम ब्रह्म की मंगल कारी वाणी ।
गायत्री है इस कलयुग की कामधेनु कल्याणी ।।