[ 1 ]
नारी आदि प्रकृति की रानी और परम कल्याणी ।
उसमें छिपी सत्य शिव सुन्दर की युग-युग की वाणी ।।
सारे जग की वह रचयति अखिल विश्व की माता ।
है समस्त मानव समाज की आदि मूल निर्माता ।।
इसीलिए कवि हृदय कर रहा अभिनन्दन उस मां का !
नयी प्रेरणा देगा सबको पदवंदन उस मां का !!
[ 2 ]
पिता निमित्त मात्र माता से बालक का तन बनता ।
उसके ही भावों को लेकर है उसका मन बनता ।।
प्रतिभा बुद्धि विचार शक्ति सब मां पर ही अवलंबित ।
बालक का सम्पूर्ण भविष्यत् है माता पर आश्रित ।।
श्रेष्ठा मातायें ही जग में उच्च पुरुष उपजाती !
दिव्य पुरुष की मातायें ही युग-युग पूजी जातीं !
[ 3 ]
नारी है वह भूमि जहां पर कुसुम मनोरम खिलते ।
इसके उपवन से ही है अगणित फल-रसमय मिलते ।।
उत्तम भूमि बिना न कभी भी उत्तम कृषि है सम्भव ।
साधन भूमि किन्तु फल से ही पाता है वह गौरव ।।
नारी ऐसी ज्योति विश्व को करती जो आलोकित !
इसके ही अन्तर में सारा अग जग है प्रतिबिंबित !!
[ 4 ]
जहां कहीं भी नारी पाती है अपमान उपेक्षा ।
जहां कहीं भी पुरुष दिखाता अहंभाव या स्वेच्छा ।।
पतन नहीं होता समाज की मर्यादा खोती है ।
वहीं बैठकर दुखित मनुजता पछताती रोती है ।।
पूजी जाती जहां कहीं भी विश्व-प्रसूता नारी !
बन जाती भू वहीं पुण्य कुंकुम केसर की क्यारी !!
[ 5 ]
चली जा रही नारी लेकर के मसाल निज करमे ।
उसके पीछे भीड़ पुरुष की चलती प्रभा लहर में ।।
नारी का उड़ता अंचल यदि श्रद्धा से नर थामे ।
शान्ति, सौम्य, समता का हो साम्राज्य बसाबसुधा में ।।
तिमिर मयि रजनी को भी यह अरुण प्रात करती है !
भू को स्वर्ग बना देती दुख दर्द को हरती है !!