सचित्र गायत्री-शिक्षा

प्रकृति का अनुसरण

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न्यस्यन्ते ये नराः पादान् प्रकृत्याज्ञानुसारतः । स्वस्थाः सन्तुस्तु ते नूनं रोग मुक्ता भवन्ति हि ।।

अर्थ—जो मनुष्य प्रकृति के नियमानुसार आहार विहार रखते हैं वे रोगों से छुटकारा पाते हैं और सदा स्वस्थ रहते हैं।
स्वास्थ्य को ठीक रखने और बढ़ाने का राजमार्ग प्रकृति के आदेशानुसार चलना, प्राकृतिक आहार विहार को अपनाना प्राकृतिक जीवन व्यतीत करना है। अप्राकृतिक, अस्वाभाविक, बनावटी आडम्बर और विलासिता पूर्ण जीवन बिताने से लोग बीमार बनते हैं और अल्पायु में ही काल के ग्रास बन जाते हैं।
ज्ञातव्य—

मनुष्य को छोड़कर अन्य सभी जीव-जन्तु पशु-पक्षी प्रकृति के नियमों का आचरण करते हैं फलस्वरूप उन्हें न तरह-तरह की बीमारियां होती हैं और न वैद्य डाक्टरों की जरूरत पड़ती है। जो पशु-पक्षी मनुष्य के वशवर्ती हैं और अप्राकृतिक आहार विहार के लिए विवश होते हैं वे तो बीमार पड़ते हैं परन्तु स्वतन्त्र पशु-पक्षियों में कहीं बीमारी और कमजोरी का नाम भी नहीं दिखाई पड़ता प्रकृति का आज्ञापालन स्वास्थ्य का सर्वोत्तम नियम है।
नीचे दस नियम ऐसे दिए जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर प्राकृतिक जीवन बिताते हुए खोये हुए स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करना और प्राप्त स्वास्थ्य को सुरक्षित एवं उन्नत बनाना बिलकुल सरल है।

(1) खूब भूख लगने पर अच्छी तरह चबाकर, प्रसन्न चित्त से, भूख से कुछ कम भोजन करना (2) फल, शाक, दूध, दही, छिलके समेत अन्न और दालें जैसे सात्विक आहार लेना (3) नशीली चीजें, मिर्च-मसाले, चाट पकवान, मिठाइयां, मांस आदि अभक्षों से बचना (4) सामर्थ्य के अनुकूल श्रम एवं व्यायाम करना, इन्द्रियों तथा शक्तियों का अनुकूल व्यय करना (5) शरीर, वस्त्र, मकान और प्रयोजनीय सामान की भली प्रकार सफाई रखना, (6) रात को जल्दी सोना प्रातः जल्दी उठना (7) मनोरंजन देशाटन और निर्दोष विनोद के लिए पर्याप्त अवसर प्राप्त करते रहना (8) कामुकता, चटोरपन, अन्याय, बेईमानी, ईर्ष्या, द्वेष, चिन्ता, क्रोध, पाप आदि के कुविचारों से मन को हटाकर सदा प्रसन्नता और सात्विकता के सद्विचारों में रमण करना (9) स्वच्छ जल वायु का सेवन (10) उपवास, ऐनेमा, फलाहार, जल, मिट्टी आदि प्राकृतिक नियमों से रोग मुक्ति का उपचार करना।

चित्र में एक व्यक्ति प्रकृति दृश्यों का अवलोकन करता हुआ यह निष्कर्ष निकाल रहा है कि स्वास्थ्य और दीर्घजीवन की कुंजी प्रकृति के नियमों पर चलना ही है।
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