सचित्र गायत्री-शिक्षा

जिन्दगी और मौत

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[ 1 ] जीवन एक अनिश्चित गति है किन्तु मृत्यु निश्चित है । सारे क्रिया-कलाप यहीं पर आ पा लेते यति हैं ।। मोह नहीं करता जीवन से भव न मृत्यु से कर तू । क्योंकि वस्त्र परिवर्तन-सा यह, है शाश्वत अक्षर तू ।। तुझमें छिपा अनश्वर उसकी सत्ता तू पहचाने ! इस जीवन अभिनय के सच्चे सूत्र धार को जाने !!

[ 2 ] दुनिया एक सराय यहां पर सभी ठहरने वाले । आज नहीं तो कल या परसों सब चल देने वाले ।। इस थोड़े से कार्य-काल में मत पैदा कर उलझन । मत पैदा कर मोह न मन में उपजा त् आकर्षण ।। प्रातः होते ही फिर उठकर जाना कहीं प्रवासी ! रह जायेगी याद एक कल्पित स्वप्निल छाया सी !!

[ 3 ] ऐसा कुछ मत कर कि पथ की प्रगति मन्द पड़ जावे । या पथ पर आ कर कोई भी दृढ़ बाधा अड़ जावे ।। यात्रा लम्बी है इस विधि ही युग-युग तुझको चलना । बार-बार आकर सराय में दो क्षण तुझे ठहरना ।। ध्यान तुझे हो दूर लक्ष्य का पाने का दृढ़ वृत हो ! पद में दृढ़ता और पंथ पर उनकी चाल सतत हो !!

[ 4 ] यह जीवन अभिनय है इसको सत्य समझ मत लेना । तेरा जो हो कार्य उसे तू सहज सफल कर देना ।। क्योंकि यही प्रति पात्र स्वयं के अभिनय में ही रत है । कुछ हंसते हैं कुछ रोते हैं कुछ पीड़ित आहत हैं ।। पटाक्षेप है मृत्यु, वहीं पर पूरा होता अभिनय ! जीवन देकर होता निष्ठुर अचल मृत्यु से परिचय !!

[ 5 ] उस महान निर्माता की है जीवन एक धरोहर । मूल्यवान प्रतिक्षण इससे ही रखना इसे संजोकर ।। जो क्षण बीतेगा न लौटकर वह वापिस आयेगा । खोने वाला खो देगा गुण ग्राहक अपनायेगा ।। जो करते उपयोग नियंता देता उन्हें बधाई ! सन्तों ने युग-युग से इसकी व्यापक महिमा गाई !!

[ 6 ] चलता जाता पुरुष मृत्यु भी पीछे चलती आती । जो डरता, पीछे हटता है इसको त्रास दिखाती ।। आगे चलती सजग जिन्दगी पथ के मोड़ बताती । और पथिक को इष्ट मार्ग पर आशा धैर्य दिलाती ।। मृत्यु और जीवन इनके ही बीच मनुज चलता है ! अपने कर्मों की वैतरणी स्वयं पार करता है !!
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