योजनंव्यसनेभ्यः स्यात्तानिपुंसस्तु शत्रवः ।
मिलित्वैतानि सर्वाणि समयेघ्नन्ति मानवम् ।।
अर्थ—व्यसनों से कोसों दूर रहे क्योंकि वे प्राण घातक शत्रु हैं।
ज्ञातव्य—
व्यसन मनुष्य के प्राण घातक शत्रु हैं। मादक पदार्थ व्यसनों में प्रधान हैं। तमाखू, चाय, गांजा, चरस, भांग, अफीम, शराब आदि नशीली चीजें एक से एक बढ़कर हानिकारक हैं। जैसे थके हुए घोड़े को चाबुक मारकर दौड़ाते हैं पर अन्त में इसमें घोड़े की रही बची शक्ति भी नष्ट हो जाती है उसी प्रकार नशा पीने पर तत्काल जो उत्तेजना या फुर्ती दिखाई पड़ती है वह अन्ततः रही बची शक्ति को बर्बाद कर देने वाली सिद्ध होती है।
मादक द्रव्य सेवन करने वाला व्यक्ति दिन दिन क्षीण होते होते अकाल मृत्यु के मुख में तेजी से चला जाता है। व्यसन मित्र से वेश में शरीर में घुसते हैं और शत्रु बन कर उसे मार डालते हैं।
नशीले पदार्थों के अतिरिक्त और भी ऐसी आदतें हैं जो शरीर और मन को हानि पहुंचाती हैं। पर आकर्षण और आदत के कारण मनुष्य उनका गुलाम बन जाता है। वे उनसे छोड़े नहीं छूटते। सिनेमा नाच रंग, व्यभिचार, मुर्गे तीतर बटेर लड़ाना आदि कितनी ही हानिकारक और निरर्थक आदतों के लोग शिकार बन जाते हैं और अपना धन समय और स्वास्थ्य बर्बाद करते हैं।
चित्र में व्यसनों को प्राण घातक शत्रु के रूप में चित्रित किया गया है। तमाखू, गांजा, शराब, अफीम, भांग इनके पीछे एक शैतानी प्रभाव काम करता हुआ दिखाया गया है। ताश चौपड़ शतरंज, जुआ आदि में समय, मस्तिष्क और धन का अपव्यय होता है जितना शक्तियां इन कार्यों में लगती हैं उतनी यदि अन्य उपयोगी कार्यों में लगाई जाय तो मनुष्य की काफी उन्नति हो सकती है।
कुसुम वाण लिए हुए काम देव व्यभिचार की ओर आकर्षित करता है, सारंगी की झंकार भी चित्त को उधर ही लुभाती है इनकी ओर जो झुका उसकी सब प्रकार बर्बादी ही बर्बादी है। गायत्री की शिक्षा है कि इन पतन, अकल्याण, विनाश और असुरता की ओर ले जाने वाले दुष्टों से बचना बुद्धिमत्ता का चिह्न है। चित्र में दिखाया गया एक सत्पुरुष अविचल भाव से अपने आसन पर बैठा है अपने चारों ओर नाचते हुए इन व्यसन व्यभिचारों से तनिक भी प्रभावित नहीं होता। वह जानता है कि इनकी ओर झुकने से बुद्धि की पवित्रता नष्ट हो जाती है और मनुष्य आसानी से कुमार्ग एवं कुकर्म की ओर चला जाता है।