जो भी नर हैं सदा प्रकृति के नियम निभाते ।
वे ही शारीरिक और बौद्धिक स्वास्थ्य बढ़ाते ।।
जो जितना भी दूर प्रकृति से रह जाता है ।
वह अपना ही अन्त निकट अपने लाता है ।।
इसीलिए जो रखते सामंजस्य प्रकृति से
लड़ सकते हैं एक बार वे कठिन नियति से !!
[ 2 ]
मानव के अतिरिक्त सभी पशु-पक्षी प्राणी ।
मान चुके हैं ‘प्रकृति सदा उनको कल्याणी’ ।।
सदा निभाते नियम प्रकृति के वे रहते हैं ।
इसीलिए तन की पीड़ायें कम सहते हैं ।।
यह उन्मादी पुरुष लड़ा उससे करता है !
पग-पग पर टकराता ठोकर खा गिरता है !!
[ 3 ]
यह कुछ ऐसे नियम कि जिनको सदा निभाओ ।
अत्याधिक जब भूख लगे तब ही कुछ खाओ ।।
खाओ सात्विक वस्तु नशीली चीजें छोड़ो ।
और अनिद्रा अति निद्रा से निज मुंह मोड़ो ।।
बनो न कामुक नारी को भोजन न बनाओ !
स्वच्छ वायु जल वृत समय का नियम निभाओ !!
[ 4 ]
जब शरीर है स्वास्थ्य तभी मन पुलकित रहता ।
पुलकित मन में ही उत्तम मस्तिष्क ठहरता ।
कहते हैं यदि धन खोया तो कुछ न गंवाया ।
यदि खोया कुछ स्वास्थ्य कभी फिर हाथ न आया
पर यदि कभी चरित्र हाथ से खो जाता है !
तो जीवित नर मृतक सदृश ही हो जाता है !!
[ 5 ]
एक पुरुष प्रिय दृश्य प्रकृति के देख रहा है ।
उसके सम्मुख ही सरिता का वेग बहा है ।।
करती हैं कल्लोल बतख पुलकित उस तट पर ।
गाय बैल चर रहे, विहंग छूते हैं अम्बर
सूर्योदय हो रहा विश्व भर में प्रकाश है !
नव जीवन है, नव जागृति है, नव प्रयास है !!