सचित्र गायत्री-शिक्षा

सावधानी और सुरक्षा

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[ 1 ] रहो सदा ही सावधान ! यह नियम बहुत हितकारी । इसे पालने वाले होते सदा विजय अधिकारी ।। अपने जीवन में जिसने भी है यह नियम निभाया । उनने इससे होने वाले लाभों को भी पाया ।। ‘सावधान’ अपने जीवन में सदा सफल होते हैं ! जग उपवन में आदर्शों के बीज सदा बोते हैं !!

[ 2 ] गफलत में रहने वाले आलसी स्वयं बन जाते । अकर्मण्य असफल रहते हैं करनी का फल पाते ।। समझ उन्हें मृत प्रायः निबल भी उस पर हमला करते । अनारक्षित कृषि को वनचारी पशु हैं निर्भय चरते ।। जगने वाला ही पाता है, सोने वाला सोता ! चलने से पथ पूरा होता, बैठा-बैठा रोता !!

[ 3 ] रक्षा करते जो न स्वास्थ्य की स्वस्थ न वे रह पाते । संचित निधि अपने ही हाथों ऐसे लोग लुटाते ।। काम क्रोध अविचार सदा उनको घेरे रहते हैं । जो बौद्धिक अवसाद मानसिक आलस में रहते हैं ।। पशुओं से भी गिरा हुआ आलस्य ग्रस्त का जीवन ! जो कर्त्तव्य रहित है उसका निष्फल है तन मन धन !!

[ 4 ] गायत्री का अक्षर हमको सावधान करता है । शिथिल पदों में नव-स्फूर्ति उत्साह नया भरता है ।। शिक्षा देता डरों न जग के घातक आघातों से । पथ की बाधाओं से, जीवन की कटु व्याधाओं से ।। कहता-उठो प्रवासी ! पथ पर दिव्य प्रकाश हुआ है ! किस कर्मठ का नहीं विश्व में सफल प्रयास हुआ है !!

[ 5 ] रक्षा करता सदा सिपाही निर्भय भव्य भवन की । यही एक वृत उसका, यह ही अभिलाषा जीवन की ।। हमें जरूरत नहीं किसी पर करें आक्रमण जाकर । पर अनुचित क्षति करे हमारी क्यों कोई खल आकर ।। ‘अपनी रक्षा अपने हाथों’ वृत तुम भी यह ले लो ! तूफानों में अपनी नौका साहसपूर्वक खेलो !!
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