सचित्र गायत्री-शिक्षा

आपत्तियों में धैर्य

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[ 1 ] जीवन के पथ पर आती हैं कितनी ही विपदायें, सुख दुःख दोनों चलते रहते इसके दायें बायें । धैर्यवान नर विपदाओं से कभी नहीं डरते हैं, और हर्ष में नहीं तनिक भी अहंकार करते हैं ।। अपना है कर्त्तव्य विपद में भी प्रयत्न शुभ करना । अपने मन में नहीं कभी भी शोक निराशा भरना ।।

[ 2 ] आशाओं को नष्ट देख कर, आती सदा निराशा, प्रायः भूला करते हैं नर शुचि विवेक की भाषा । यह विवेक का नाश पराजय का कारण बन जाता, इस प्रकार नर धीरज खोकर संकट स्वयं बुलाता ।। यह जीवन का क्रम वैसे भी एक विशद अभिनय है । मोह भला फिर क्यों हंसने से रोने से क्यों भय है ।।

[ 3 ] रहते नहीं दिवस सुख के दुःख के दिन भी कब रहते वेगवती धारा में गति के साथ सदा वे बहते । किन्तु बुरे दिन कुछ विवेक तो मानव को दे जाते, सुख के दिन केवल सपनों में ही है उसे भुलाते ।। विपदायें हैं एक चुनौती अंतुलित साहस बलको । यह केवल दुःख दे सकती हैं अविवेकी निर्बल को ।।

[ 4 ] गायत्री की शिक्षा है यह—जो बीता सो बीता, क्यों भविष्य से भय हो जब वह तो है केवल रीता । वर्तमान के प्रति निर्भय रहकर कर्मों को करना, कितनी भी हो कठिन उपस्थित किंतु नहीं है डरना कुछ भी मानसिक संतुलन कभी न जो खोते हैं । अस्थिरता से असफलता के बीज नहीं बोते हैं ।।

[ 5 ] धीर पुरुष कर्त्तव्य मार्ग पर ही है बढ़ता जाता, कोई भी आकर्षण या भय रोक नहीं है पाता । विपदाओं का आता उसको कोई ध्यान नहीं है, शूलों फूलों की होती उसको पहचान नहीं है ।। गायत्री के साधक में यह सब ही गुण होते हैं । इसीलिए वे कभी नहीं अपना साहस खोते हैं ।।
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