गोप्याः स्वस्या मनोवृत्तीर्नासहिष्णुर्नरो भवेत् ।
स्थिति मज्यस्य वै वीक्ष्य तदनुरूप माचरेत् ।।
अर्थ—अपने मनोभावों को छिपाना नहीं चाहिए। मनुष्य को असहिष्णु नहीं होना चाहिए। दूसरों की परिस्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए।
अपने मनोभाव और मनोवृत्ति को छिपाना, ही छल कपट और पाप है। जैसा भाव भीतर है वैसा ही बाहर प्रकट कर दिया जाय तो वह पाप निवृत्ति का सबसे बड़ा राज मार्ग है। स्पष्ट और खरी कहने वाले, पेट में जैसा है वैसा ही मुंह से कह देने वाले लोग चाहे किसी को कितने ही बुरे लगें पर वे ईश्वर और आत्मा के आगे अपराधी नहीं ठहरते।
जो आत्मा पर असत्य आ आवरण चढ़ाते रहते हैं, वे एक प्रकार के आत्म हत्यारे हैं। कोई व्यक्ति यदि अधिक रहस्य वादी हो, अधिक अपराधी कार्य करता हो तो भी उसके अपने कुछ ऐसे विश्वासी मित्र अवश्य होने चाहिए जिनके आगे अपने सब रहस्य प्रकट करके मन को हलका कर लिया करे। और उनकी सलाह से अपनी बुराइयों का निवारण कर सके।
प्रत्येक मनुष्य का दृष्टिकोण, विचार, अनुभव, अभ्यास, ज्ञान, स्वार्थ, रुचि एवं संस्कार अलग होते हैं। इसलिए सबका सोचना एक प्रकार से नहीं हो सकता। इस तथ्य को समझते हुए हर व्यक्ति को दूसरों के प्रति सहिष्णु एवं उदार होना चाहिए। अपने से किसी भी अंश में मतभेद रखने वाले को मूर्ख, अज्ञानी, दुराग्रही, दुष्ट या विरोधी मान लेना उचित नहीं। ऐसी असहिष्णुता ही बहुधा झगड़ों की जड़ होती है। एक दूसरे के दृष्टि कोण के अन्तर को समझते हुए यथा सम्भव समझौते का मार्ग निकालना चाहिए। फिर भी जो मतभेद रह जाय उन्हें पीछे धीरे धीरे सुलझाते रहने के लिए छोड़ देना चाहिए।
संसार में सभी प्रकार के मनुष्य हैं। मूर्ख-विद्वान, रोगी-स्वस्थ, पापी-पुण्यात्मा, कायर-वीर, कटुवादी-नम्र, चोर-ईमानदार, निन्दनीय-आदरास्पद, स्वधर्मी-विधर्मी, दयापात्र-दंडनीय, शुष्क–सरस, भोगी-त्यागी, आदि परस्पर विरोधी स्थितियों के मनुष्य भरे पड़े हैं। उनकी स्थिति को देखकर तदनुसार उनसे भाषण, व्यवहार एवं सहयोग करे। उनकी स्थिति के आधार पर ही उनके साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करे।
चित्र में एक बुद्धिमान मनुष्य अनेक प्रकृति के मनुष्यों के बीच बैठा हुआ है और उनसे सहयोग स्थापित कर रहा है। जिनमें अधिक अच्छाई एवं समानता हो उनकी छोटी कमियों की उपेक्षा करना और अच्छाइयों से लाभ उठाना यही सामाजिकता की उचित नीति है। मित्रता भी एक बहुमूल्य सम्पत्ति है यह जान कर वह व्यक्ति अपने अच्छे और सच्चे मित्रों की संख्या बढ़ाने में संलग्न है। समान हृदय के लोगों का साथ भी संसार में एक स्वर्गीय आनन्द है।