ब्रह्माजी ने चार वेदों की रचना से पूर्व चौबीस अक्षर वाले गायत्री मन्त्र की रचना की। इस मन्त्र के एक एक अक्षर में ऐसे सूक्ष्म तत्व भरे हुए हैं कि जिनके पल्लवित होने पर चारों वेदों की अनेक शाखा प्रशाखाएं उद्भूत हुईं। समस्त शास्त्र, पुराण, इतिहास, स्मृति, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, दर्शन, आदि एक गायत्री वट वृक्ष के पत्र पल्लव ही हैं। गायत्री के रहस्यों को विस्तार पूर्वक वर्णन करने के लिए ही इन सब की रचना हुई है। जो ज्ञान किसी भी शास्त्र में उपलब्ध है वह सब बीज रूप से गायत्री महा मंत्र के चौबीस अक्षरों में प्रारम्भ से ही मौजूद है।
धर्म, नीति, विज्ञान, कर्म, उपासना, तत्व ज्ञान, आदि बौद्धिक प्रक्रियाएं तो गायत्री में हैं ही, साथ ही योग, तंत्र, यंत्र निर्माण, रसायन, चिकित्सा, ज्योतिष, दिव्य अस्त्र, ऋद्धि सिद्धि आदि के चमत्कारी भारतीय विज्ञान के अनेक गुप्त रहस्य इन अक्षरों में छिपे हुए हैं, जिनके द्वारा मनुष्य ही पुराणोक्त देव और असुरों जैसे अद्भुत पराक्रमों का स्वामी बन सकता है।
इस पुस्तक में गायत्री के 24 अक्षरों का अर्थ गायत्री स्मृति के अनुसार दिया गया है। यह शिक्षाएं ऐसी हैं जिनको सार्वभौम ज्ञान या सत्य सनातन धर्म कहा जा सकता है। कोई भी देश, जाति, समाज, सम्प्रदाय इन शिक्षाओं और सिद्धान्तों का खण्डन नहीं कर सकता। इनके सम्बन्ध में किसी वर्ग का कोई विरोध भी नहीं है। यह शिक्षाएं देश, काल, पात्र के अनुसार भी नहीं बदलती। अनादि काल से यह आदर्श समान रूप से उपयोगी एवं सम्माननीय रहे हैं।
इन शिक्षाओं में आध्यात्म, दर्शन, धर्म, सामाजिकता राजनीति, तर्क, लोक व्यवहार आदि सभी आवश्यक तत्वों का सम्मिश्रण है। इन सिद्धान्तों के ढांचे में यदि अपना व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन ढाला जाय तो निस्संदेह वे सब उलझनें सुलझ सकती हैं जिनके कारण आज युद्ध और विनाश की घटनाएं घुमड़ रही है और भय, त्रास, उत्पीड़न, अन्याय और आशंका से सर्वत्र आतंक छाया हुआ है।
विज्ञान ने सुविधाओं के साधन बढ़ाये हैं, परन्तु ज्ञान के अभाव में वे साधन विनाश और पतन के हेतु बन रहे हैं। सद्ज्ञान के बिना मनुष्य की व्यक्तिगत और सामूहिक सुख शान्ति सुरक्षित नहीं रह सकती। यदि शान्ति प्रेम, सहयोग पूर्वक मनुष्य जाति को रहना है तो उसे उसी सत्य सनातन धर्म को अपनाना पड़ेगा, उन्हीं आदर्शों का अनुसरण करना पड़ेगा। जो गायत्री के 24 अक्षरों में सन्निहित हैं।
चित्र में गायत्री के महान् ज्ञान को जनता द्वारा ध्यान पूर्वक सुना और समझा जाता हुआ दिखाया गया है। नव युग का श्रीगणेश इसी मार्ग को अपनाने से हो सकता है।