रेवेव निर्मला नारी पूजनीया सता सदा ।
यतो हि सैव लोकेऽस्मिन् साक्षाल्लक्ष्मी मता बुधैः ।
अर्थ—नारी सदैव नर्मदा नदी के समान निर्मल है। वह पूजनीय है क्योंकि संसार में उसे ही साक्षात लक्ष्मी माना गया है।
ज्ञातव्य—
जैसे नर्मदा का जल सदा निर्मल रहता है उसी प्रकार ईश्वर ने नारी को स्वभावतः निर्मल अंतःकरण दिया है। परिस्थिति दोषों के कारण अथवा दुष्ट संगति के कारण कभी कभी उसमें विकार पैदा हो जाते हैं पर यदि कारणों को बदल दिया जाय तो नारी हृदय पुनः अपनी शाश्वत निर्मलता पर लौट आता है।
स्फटिक मणि को रंगीन मकान में रख दिया जाय या उसके निकट कोई रंगीन पदार्थ रख दिया जाय तो वह मणि भी रंगीन छाया के कारण रंगीन दिखाई पड़ने लगती है। परन्तु यदि उन कारणों को हटा दिया जाय तो वह शुद्ध, निर्मल एवं स्वच्छ वर्ण की अपने स्वाभाविक रूप में दिखाई देती है। इसी प्रकार नारी भी जब तक बुरी परिस्थितियों में पड़ी होती है तब वह बुरी दिखाई देती है उस परिस्थिति का अन्त होते ही वह निर्मल एवं निर्दोष हो जाती है।
नारी, लक्ष्मी का अवतार है। भगवान मनु का कथन पूर्ण सत्य है कि जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं अर्थात् सुख शान्ति के समस्त उपकरण उपस्थित रहते हैं। सम्मानित एवं सन्तुष्ट नारी अनेक सुविधाओं और सुव्यवस्थाओं का घर बन जाती है। उसके साथ गरीबी में भी अमीरी का आनन्द बरसता है। धन दौलत निर्जीव लक्ष्मी है किन्तु स्त्री तो लक्ष्मी जी की सजीव प्रतिमा है। उसके समुचित आदर, सहयोग एवं सन्तोष का सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए।
नारी में नर की अपेक्षा सहृदयता, दयालुता, उदारता, सेवा, परमार्थ एवं पवित्रता की भावना अत्यधिक है। उसका कार्य क्षेत्र संकुचित करके घर तक ही सीमाबद्ध कर देने के कारण संसार में स्वार्थ परता, निष्ठुरता, हिंसा, अनीति एवं विलासिता की बाढ़ आई हुई है यदि राष्ट्रों का सामाजिक और राजनैतिक नेतृत्व नारी के हाथ में हो तो उसका मातृ हृदय अपने सौजन्य के कारण सर्वत्र सुख शान्ति की स्थापना करदे।
नारी के द्वारा अनन्त उपकार एवं असाधारण सहयोग प्राप्त करने के उपरान्त नर के ऊपर अनेक पवित्र उत्तर दायित्व आते हैं। उसे स्वावलम्बी सुशिक्षित, स्वस्थ, प्रसन्न एवं संतुष्ट बनाने के लिए नर को सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। मारना, पीटना, या अपमान जनक व्यवहार करना, हेय समझना, मानवोचित अधिकारों से वंचित करना या उसे अपनी सम्पत्ति समझना सर्वथा अधार्मिक व्यवहार है।
चित्र में नारी को गृहलक्ष्मी के रूप में, गृहस्वामिनी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, पुरुष की कमाई पर उसी का नियंत्रण होना चाहिए। जहां नारी सुखी है वहां साधारण गृहस्थ भी सब प्रकार भरा पूरा रहता है। जहां नारी दुखी रहेगी उस घर में सदा दरिद्रता एवं क्लेश का साम्राज्य छाया रहेगा।