सचित्र गायत्री-शिक्षा

धन का उचित उपयोग

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( 1 ) धन से आवश्यक अभाव की पूर्ति करो, हे साथी, करो न अनुचित कार्य न बांधो अहंकार का हाथी,, तन मन बुद्धि तथा आत्मा की उन्नति का यह साधन, इसी दृष्टि से करो शक्ति भर तुम धन का उत्पादन,, फिर उसमें भी केवल ऐसी विधियां ही अपनाओ । जिसके कारण नहीं दूसरों को तुम दुःख पहुंचाओ ।।

( 2 ) साध्य उचित हो पर साधन भी उचित रहें यह ठानो, अपने हित के साथ दूसरों की पीड़ा भी जानो,, छल अन्याय क्रूरता शोषण से जो धन आता है, वह होता है नष्ट साथ में यश भी ले जाता है,, पौरुष और परिश्रम से जो अर्जित होता धन है । वह प्यासी भू पर बरसाता तुष्टि रूप जीवन है

( 3 ) पैदा करना सरल किन्तु व्यय करना नहीं सरल है, स्वास्थ्य मृत्यु दोनों दे सकता यह वह तीव्र गरल है,, संयम से सद् कार्यों में जो हैं जिन द्रव्य लगाते, वे युग युग के लिए भूमि पर नाम अमर कर जाते,, अनुचित कर्मों में व्यय कर जो शूल पंथ पर बोते । वे औरों का अनहित करते और स्वयं भी रोते ।।

( 4 ) चंचल लक्ष्मी है इसका भी है क्या भला ठिकाना, वृथा वृथा है इस पर कोई भी अधिकार जमाना,, यह निमित्त है स्वयं साध्य बनने की शक्ति न इसमें, इसीलिए ही रखो बहुत ज्यादा अनुरक्ति न इसमें,, इसके संचय में ही जो जन जीवन पूर्ण बिताते । सर्प-सदृश इसकी रक्षा में पड़े सदा रह जाते ।।

( 5 ) उद्योगी नर चीर सिंधु का वक्ष रत्न है लाता, विश्व भारती के चरणों में श्रद्धा सहित चढ़ाता,, है देवी के एक हाथ में गेहूं की शुचि वाली, आश्वासन देने को उसका हाथ दूसरा खाली,, धन्य हुआ धन जो माता के चरणों में चढ़ता है । धन्य वही धनपति जो माता के सन्मुख बढ़ता है ।
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