या यात्स्वोत्त्र दायित्वं विहन् जीवने पिता ।
कुपिता पि तथा पापं कुपुत्रोऽरित यथा यतः ।।
अर्थ—पिता सन्तान के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ठीक प्रकार निवाहे। कुपिता भी वैसा ही पापी होता है जैसा कुपुत्र।
ज्ञातव्य—
जो अधिक बुद्धिमान है उसका उत्तरदायित्व भी अधिक है। कर्त्तव्य में ढील, उपेक्षा एवं असावधानी भी अन्य भयंकर बुराइयों के समान ही है। इसका परिणाम भी बुरा ही होता है। अक्सर पुत्र, शिष्य, स्त्री, सेवक आदि के बिगड़ जाने, बुरे होने, अवज्ञाकारी एवं अनुशासन हीन होने के बहुत उदाहरण सुने जाते हैं। इन बुराइयों का बहुत कुछ उत्तरदायित्व पिता, गुरु, पति, शासक एवं संरक्षकों पर भी है। व्यवस्था में शिथिलता डालने, बुरे मार्ग पर चलने का अवसर देने, नियन्त्रण में सावधानी न रखने से भी ऐसी घटनाएं प्रायः घटित होती रहती हैं।
लोग अपने अधिकार पर बहुत जोर देते हैं पर अपने कर्त्तव्य से जी चुराते हैं यही कलह का कारण है। यदि दोनों ओर से अपने अधिकारों का थोड़ा त्याग किया जाय और कर्त्तव्यों का पालन करने में पूरी-पूरी सावधानी बरती जाय तो आज जो मालिक मजदूर, पिता पुत्र, स्त्री पुरुष आदि में झगड़े चलते हैं उनका अवसर ही न आवे और आपसी सम्बन्ध बड़ी मधुरता से निभते चले जायं। छोटों की भूल, उद्दंडता एवं नासमझी के प्रति बड़ों को क्षमा शील तथा उदार होना चाहिए। उनकी बुद्धिहीनता पर क्रुद्ध होकर अपनी शक्ति का कुप्रहार करना नितान्त अनुचित है। बड़ों का, सामर्थ्यवानों का, छोटों के प्रति, दुर्बलों के प्रति, उदार एवं क्षमापूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
सन्तान उत्पन्न करना एक बहुत ही जिम्मेदारी से भरा हुआ कार्य है। इस बोझ को कन्धे पर उठाने से पूर्व हर माता पिता को यह विचार करना चाहिए कि क्या उनकी शारीरिक आर्थिक एवं बौद्धिक स्थिति ऐसी है कि वे नए बच्चे का समुचित विकास कर सकें। अपनी अयोग्यता और असमर्थता को ध्यान में न रख कर जो बच्चे उत्पन्न किए जाते हैं वे अपने लिए राष्ट्र के लिए समाज के लिए एक भारी संकट उत्पन्न करते हैं।
माता पिता के आचरण एवं व्यवहार में प्रकट एवं अप्रकट प्रभाव से बच्चों की मनोभूमि का बहुत अंश बनता है। इसलिए उन्हें सद्गुणी एवं अच्छे नागरिक बनाने के लिए संरक्षकों को अपने आचरण पर कड़ा संयम रखना चाहिए। यों जीवन अपने जन्म-जन्मान्तरों के अनेक गुण, कर्म, स्वभाव और संस्कार साथ लेकर भी आता है पर अभिभावकों का प्रभाव एवं कर्त्तव्य भी बहुत काम करता है।
चित्र में एक नन्हा-सा बालक गुरु रूप से अपनी मौन वाणी द्वारा माता पिता एवं अभिभावकों को अनेक बातें सोचने और अनेक कर्त्तव्यों का पालन करे का उपदेश दें रहा है। इन शिक्षाओं पर हमें पूरा ध्यान देना चाहिए।