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September 1986

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अन्तःकरण जितना भ्रष्ट होता जाता है, बुद्धि का वैभव उतना ही संकीर्णता अपनाता जाता है।

हर वर्ष समर्थ शाखाऐं अपने यहाँ वार्षिक प्रज्ञा आयोजन करती हैं और उसके लिए शान्ति कुंज से प्रचारक जीप गाड़ियाँ बुलाती हैं। उनमें पाँच वक्ता प्रचारक वाद्य यंत्र, लाउडस्पीकर, टेपरिकार्डर, विद्युत उत्पादक यंत्र, यज्ञशाला प्रवचन मंच आदि सभी आवश्यक उपकरण साथ रहते हैं। 48 घंटे के कार्यक्रम में दो बार यज्ञ, दो बार संगीत प्रवचन और एक मध्याह्न को कार्यकर्ताओं की विचारगोष्ठी सम्पन्न हो जाती है यह उपक्रम अत्यंत ही लोक प्रिय हुआ है और जहाँ भी जागृति के चिन्ह हैं वहाँ सभी स्थानों से वर्ष में एक बार ऐसे आयोजनों की माँग रही है। इससे केन्द्र और शाखा के बीच विचार विनिमय का आदान-प्रदान भी भली भाँति चलता है। साथ ही वह मार्ग दर्शन भी मिलता है, जिससे बदले हुए समय के अनुरूप हमें अपने में, अपने क्षेत्र में, कार्यक्रम में क्या परिवर्तन करना चाहिए। केन्द्र और शाखा का यह मिलन क्रम, एक प्रकार से बादल बरसने, बसन्त ऋतु उतरने जैसा उल्लास भरा नवजीवन से परिपूर्ण वातावरण बनाता है।

इसी मिलन क्रम को नया रूप देते हुए इस वर्ष जीप कार्यक्रमों में थोड़ी कटौती की गई है और सारा ध्यान इस धुरी पर केन्द्रित किया गया है कि वरिष्ठ कार्यकर्ता शान्ति कुँज एक महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करने आवें। तथा यहाँ से लौटने के उपरान्त अपने यहाँ छोटे रूप में वैसी ही प्रशिक्षण पाठशाला चलायें जिसे शान्ति कुंज के बड़े प्रशिक्षण का छोटा रूप कहा जा सके।

इसके लिए प्रयत्न यह चलना चाहिए कि अपने यहाँ के समीपवर्ती क्षेत्र के जो भी उत्साही शिक्षित नर-नारी हैं उन सब से संपर्क साधकर प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा स्थानीय प्रज्ञा पाठशाला में सम्मिलित रहने के लिए नये व्यक्तियों को तैयार किया जाय। चूँकि सभी को अपने-अपने घरेलू काम भी करने होते हैं। इसलिए सवेरे दो घण्टे- शाम को दो घण्टे मिलाकर इस पाठ्यक्रम को चार घण्टा प्रतिदिन का बनाया जा सकता है। यह एक व्यवस्था हुई जिसमें वहीं के व्यक्तियों का शिक्षण वहाँ के ही वरिष्ठ परिजनों द्वारा होगा।

इसमें बाहर के अध्यापकों की भी आवश्यकता पड़ सकती है। कारण कि स्थानीय लोगों का सहयोग तो प्रमुख होता है, पर अध्यापक केन्द्र की ओर से आने पर उत्साह नये सिरे से उभरता है। इस वर्ष जीप टोलियों में की गयी कमी की पूर्ति वरिष्ठ स्तर के दो-दो अध्यापकों टोलियों द्वारा होगी एवं सभी समर्थ शाखाओं में पन्द्रह दिवसीय क्षेत्रीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने के लिए केन्द्र से यह भेजी जाएगी। चार घण्टे नित्य पाठशाला चलेगी। जिनके पास अधिक समय होवे उस समय में पाठशाला कक्ष में अभ्यास करेंगे। जहाँ ऐसे व्यक्तियों की संख्या अधिक होगी, वहाँ मध्याह्न में भी सुनियोजित प्रशिक्षण चलाया जा सकता है। इस प्रकार शान्ति कुँज के समग्र प्रशिक्षण की तुलना में समय की दृष्टि से क्षेत्रीय प्रशिक्षण आधा-चौथाई होने पर भी उसे सार संक्षेप एवं काम चलाऊ कहा जा सकेगा। भावी अभ्यास के लिए उतने से भी गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगेगी। प्रारम्भिक धक्का केन्द्र से आए प्रशिक्षकों द्वारा लगाने के बाद वह क्रम फिर नियमित चलने लगेगा। क्षेत्र में नई चेतना जागेगी एवं नये व्यक्ति मिशन से जुड़ने लगेंगे।

शान्ति कुँज के सत्रों में जो होकर गये हैं और जिनने अध्यापन स्तर की क्षमता उत्पन्न कर ली है, उन सबसे नये सिरे से दो महीने का समयदान देने के लिए आग्रह किया जा रहा है। इतने में वे समीपवर्ती तीन पाठशालाओं का अध्यापन कार्य कर लेंगे। पाँच दिन आने जाने तथा वहाँ की प्रारम्भिक व्यवस्था जमाने के लिए रखे गये हैं। सत्र 15 दिनों का होते हुए भी अध्यापकों को बीस दिन ही लगा करेंगे। साठ दिन एक साथ या बीस-बीस दिन तीन बार देकर वे इस सत्र विस्तार योजन के भागीदार बन सकते हैं। जितने प्रशिक्षित स्थायी कार्यकर्ता शान्ति कुँज में हैं उन्हें तो दो-दो की टोली में भेजा ही जाएगा, पर साथ ही यह प्रयत्न भी चल रहा है कि इस वर्ष जिनने एक मास के मई माह से प्रारम्भ हुए युग नेतृत्व सत्र शान्ति कुँज में पूरे कर लिये हैं, उनमें से सुयोग्य प्रतिभाएं अधिक से अधिक संख्या में मिलें और वे हर मंडल में नये कार्यकर्ता उत्पन्न करने उन्हें प्रवचन संगीत यज्ञ कृत्य, जड़ी बूटी चिकित्सा, दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखना, जन्म दिन, झोला पुस्तकालय आदि की क्रिया प्रक्रियाओं में प्रवीणता प्राप्त कर लें।


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