Quotation

September 1986

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जो तुम्हें बुरा लगता है उसका समर्थन, अनुमोदन भी न करो।

सद्गुण चिथड़ों में भी उतने ही चमकते हैं जितने कि मखमली वेषभूषा में।

सभी को ईश्वर श्रेष्ठ उत्तरदायित्व सौंपता है, पर प्रसन्न उन्हीं पर होता है जो उन्हें निभाते हैं।

हर बाप चाहता है कि उसका बेटा उसकी अपेक्षा अधिक बड़ा आदमी बने। हर माँ चाहती है कि उसकी बेटी उसकी तुलना में अधिक सुखी रहे। हमारी आन्तरिक भावना ही नहीं, चेष्टा भी यही है कि प्रज्ञा-परिजनों को वह सुयोग मिले, जिसके आधार पर वे महामानवों में गिने जा सकने की स्थिति तक पहुँचें और इतिहास के पृष्ठों पर अपने अन्तिम चिन्ह छोड़ जायँ।

एक चीज हमारे मन में है उसे लेने वाला कोई हो, ऐसा जी ललचाता है। गाय थनों में दूध भरे फिरती है और उन्हें खाली करने के लिए बच्चे को रंभा-रंभाकर ढूँढ़ती और पुकारती है। हमारे पास कुछ ऐसा भी है, जो उच्चस्तरीय है और हमारे मार्ग दर्शक ने समूची अनुकम्पा समेट कर हमें दी है। उसे साथ लेकर नहीं मरना चाहते, वरन् यह चाहते हैं कि उस पारस मणि का प्रियजन भी लाभ उठावें जो हमें सौभाग्य वश मिली है। यह स्वाति बूँद की तरह बरसी और नगण्य-सी सीप के पेट से बहुमूल्य मोती उगाने में समर्थ हुई है।

यह दैवी अनुग्रह है- “नेतृत्व”। हमें एक समग्र नेता के रूप में जीवन-यापन करने का अवसर मिला है। अपने अन्तःकरण को मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार को हमने ऐसी दिशा दी है जिसके सहारे व्यक्तित्व को ब्राह्मणोचित बनने का- ब्राह्मी-सम्पदा से लद जाने का अवसर मिला है। अपने आपे का- वैभव, वर्चस्व और साधनों का हमने उच्चस्तरीय उपयोग किया है। एक शब्द में हम अपने आपके नेता बनकर जिये हैं। इसके अतिरिक्त 24 लाख परिजनों के माध्यम से कोटि-कोटि मनुष्यों को प्रेरणा, प्रकाश, अभ्युदय और ज्ञान विज्ञान से भरपूर बनाया है। प्रज्ञा परिवार की संगठना, प्रज्ञापीठों की संरचना, युग साहित्य की सर्जना तथा विश्वविद्यालय स्तर की प्रशिक्षण क्षमता का परिचय दिया है। उन घटनाओं और कृतत्त्वों का उल्लेख करना इन पंक्तियों में अनावश्यक होगा, जिन्हें परिजनों में से सभी निजी तौर पर जानते हैं और अनुभव करते हैं कि निशा-निराशा के वातावरण में एक ऐसी चाँदनी उगी जिसने सुदूर क्षेत्र में प्रकाश उत्पन्न करके भटके हुए लोगों को मार्ग दिखाया। इतना ही नहीं, दलदल में फँसे हुओं को उखाड़ा, उछाला और इस योग्य बनाया कि वे अन्यायों को भी सहारा दे सकें। इस क्षमता को दूसरे शब्दों में नेतृत्व भी कह सकते हैं। यह हमें मिला है। आकाँक्षा यह है कि अपने स्वजन सम्बन्धियों में से प्रत्येक को यह सम्पदा हस्तगत हो। उसकी क्षमता, अभिरुचि एवं कार्य पद्धति ऐसी हो जिसे युग नेतृत्व के रूप में देखा और सराहा जा सके।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118